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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और गोरोंके बराबर हक माँगेंगे। उन्हें वे अधिकार दिये बिना हमारा छुटकारा नहीं है। आप उन्हें हकदार मानें या न मानें किन्तु हमें वे हक अपनी कमजोरीके कारण देने पड़ेंगे।

श्री स्टेंटका यह भाषण अच्छी तरह समझा जाने योग्य है। श्री स्टेंट समझते हैं कि श्री स्मट्सने दगा किया है। उनका पक्ष असत्य है और भारतीयोंका सत्य। असत्य सदा सत्यके सामने कमजोर पड़ता है। अतः भारतीय समाज यदि सत्यपर दृढ़ रहे तो विजय निश्चित है।

मंगलवार [ अगस्त ११, १९०८ ]

नायडूका सम्मान

तमिल समाजने मार्केट स्ट्रीटमें श्री थम्बी नायडूके सम्मानमें कल शामको ६ बजे सभा की थी। उसमें श्री ईसप मियाँ, श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री कुवाड़िया आदि सज्जन उपस्थित थे। श्री नायडूकी बहादुरीपर अनेक भाषण हुए। श्री नायडूको जब पुष्पहार पहनाया गया तब लोगोंने तालियाँ बजाईं। सभा ९ बजे तक होती रही।

फेरीवाले पकड़े गये

श्री अहमद ईसप, श्री वली हसन[१], श्री कारा ओधव, श्री इब्राहीम मारविआ, श्री इस्माइल अहमद, श्री जीवण भीखा, तथा श्री सुलेमान मुसा---ये भारतीय, बिना परवाना व्यापार करनेके कारण, गिरफ्तार किये गये। इनमें श्री वली हसनके पास परवाना था, तो भी उन्होंने परवाना नहीं दिखाया। बादमें साबित हुआ कि उनके पास परवाना है, इसलिए उन्हें छोड़ दिया गया। बाकी सभी लोगोंको एक-एक पौंड जुरमाने अथवा सात-सात दिन जेलकी सजा हुई। उन लोगोंने सजा मंजूर की और जुर्माना नहीं दिया। इस मुकदमेमें जेलकी सजा जरा मुश्किलसे मिली; भय यह था कि कहीं ऐन वक्तपर जमानतके पैसेपर नजर रखकर वेरीनिगिंगके समान केवल जुर्माना ही न कर दिया जाये। किन्तु जिनके विषयमें ऐसा किया जानेकी आशंका थी, श्री गांधीने मुकदमा चलनेके पहले ही उनकी जमानत वापस ले ली थी।

चेतावनी

इससे सावधान हो जाना चाहिए कि कोई जमानत न दे। यदि जमानत देनी ही पड़े, तो वह दूसरेके नामकी होनी चाहिए। पुलिस जबरदस्ती जमानत नहीं माँग सकती। जिनकी जेबमें पैसा हो उन्हें भी हिम्मतके साथ जमानतसे साफ इनकार करना चाहिए।

पटेल तथा नायडू

श्री पटेल तथा श्री पी० के० नायडू जिन्हें [ आज उपनिवेश छोड़ देनेका ] सात दिनका नोटिस मिला, अब किसी भी दिन पकड़े जा सकते हैं।[२]

सोराबजी

श्री सोराबजी आगामी बुधवार, तारीख १८ को छूटेंगे। मुझे आशा है कि उस समय सैकड़ों भारतीय उन्हें लेने जायेंगे। श्री सोराबजीका योग्य सम्मान करनेकी तैयारियाँ हो रही हैं।

 
  1. काजी हसन? देखिए "काजी हसन और अन्य लोगोंका मुकदमा", पृष्ठ ४३४-३५।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्टी", पृष्ठ ४१८-१९।