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पत्र:'स्टार' को

आप एसा सोचते मालूम होते हैं कि अधिनियमको रद करनेकी माँगसे एशियाइयोंका मंशा यह है कि एशियाई अधिनियम किसी भी रूपमें बाकी न रहे। यह बात सच्चाईसे इतनी दूर है कि अधिनियमको रद करने की दृष्टिसे प्रवासी विधेयकका जो मसविदा तैयार हुआ था और उपनिवेश-सचिव द्वारा मुझे दिखाया गया था उसमें एशियाई अधिनियम के ऐसे विधान, जो पहले से ही दे दिये गये प्रमाणपत्रों या ऐसी ही दूसरी चीजोंकी सम्यक जाँचके लिए जरूरी हैं, वहाँसे ही दिये गये थे। एशियाई लोग निरीक्षणका---जाँचका---विरोध नहीं करते, लेकिन वे उस अधिनियमका विरोध अवश्य करते हैं जो जालसाजीके आरोपोंपर आधारित है और जिसमें अनेक आपत्तिजनक धाराएं शामिल हैं।

उक्त अधिनियमको रद करनेके वचनकी बात लें तो आपकी रिपोर्टके अनुसार पिछली ६ फरवरीको जनरल स्मट्सने यह कहा था कि "उन्होंने एशियाइयोंसे कह दिया है कि वे अधिनियमको तबतक रद नहीं करेंगे जबतक कि हरएक एशियाई अपना पंजीयन नहीं करा लेता।" मैं उनके इस कथनको उनके उस वचनका सार्वजनिक पुष्टीकरण मानता हूँ जो उन्होंने मुझे ३० जनवरीको दिया था और जिसे उन्होंने पिछली ३ फरवरीको दुहराया था। यदि उनकी इस घोषणाका कोई दूसरा अर्थ होता हो तो मैं स्वीकार करता हूँ कि वह मेरी समझके बाहर है।

आपने मेरे द्वारा जनरल स्मट्सपर श्री नायडूके बच्चेकी हत्याका दोष लगाये जाने और वेरीनिगिंगमें वहाँके मजिस्ट्रेटने अपराधी भारतीयोंपर किये गये जुरमानोंके बदलेमें उनका माल-असबाब जब्त करनेका जो आदेश दिया है उसके सम्बन्धमें "कानून समर्थित डाका" शब्दोंका उपयोग किये जानेपर रोष प्रकट किया है।[१] श्रीमती नायडूके पतिको तीसरी बार जेलकी सजा होनेपर, उसके तुरन्त बाद उनके कमरेमें जो घटना घटी वह मैंने अपनी आँखों देखी थी। मैं उसे भूल नहीं सकता। छः दिनके बाद मैंने सुना कि उन्होंने एक मृत बालकको जन्म दिया। श्री नायडूने इसके सिवा और कोई अपराध नहीं किया था कि पहले तो उन्होंने जनरल स्मट्सको दुविधाकी एक अत्यन्त अटपटी परिस्थितिसे बाहर निकलनेमें मदद दी और फिर किसी भी दूसरी चीजकी तुलनामें अपनी अन्तरात्माकी प्रेरणाको प्राथमिकता दी। आपको शायद आश्चर्य होगा, लेकिन मैं यह बात फिर दुहराता हूँ कि बालककी हत्याका दोष जनरल स्मट्सके ही सिरपर रखा जाना चाहिए। अन्तमें, यदि कोई व्यक्ति बलका प्रयोग करके मेरे माल-असबाबका अपहरण करे तो कानून उसके इस कृत्यको डकैती कहेगा। जब मेरा माल-असबाब जब्त करने और इस तरह मुझे मेरी अन्तरात्माका समर्पण करनेको विवश करनेके लिए स्वयं कानूनके ही करणका उपयोग किया जाता है तो इस प्रक्रियाको "कानून-समर्थित डाका" कहनेके लिए मुझे क्षमा किया जाये। और जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया है उनके माल- असबाबका इस तरह जबरदस्ती बेचा जाना भारतीयोंके लिए यही अर्थ रखता है।

[ आपका, आदि,
मो० क० गांधी ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-८-१९०८
 
  1. देखिए "भाषण: सार्वजनिक सभामें", पृष्ठ ४३१।