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२७०. भेंट: 'ट्रान्सवाल लीडर' को

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त १२, १९०८ ]

कल (अगस्त १२, १९०८ को) ट्रान्सवालके अनेक प्रमुख भारतीयोंने[१] चार्ल्स टाउनके लिए प्रस्थान किया। उनका इरादा शिनाख्तका सबूत दिये बगैर ट्रान्सवालकी सीमामें प्रवेश करनेका है। ...उनमें सभी ट्रान्सवालके स्थायी निवासी हैं और एकके अलावा सभीके पास स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र हैं। ये अपने पंजीयन प्रमाणपत्र दिखानेसे इनकार करेंगे, जो एशियाई कानूनके अनुसार उनसे अवश्य माँगे जायेंगे। सरकार द्वारा अपेक्षित ब्यौरे देनेसे इनकार करनेपर ये लोग गिरफ्तार कर लिए जायेंगे। उस दशामें वे एशियाई कानूनकी जरूरतोंको पूरा करनेसे इनकार करनेके अभियोगको स्वीकार करेंगे ताकि वे जेल भेजे जायें।...

कुछ अन्य भारतीय भी, जो प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके अधिकारी हैं, परन्तु एशियाई संशोधन अधिनियमके अन्तर्गत नहीं, शायद अगले कुछ दिनोंमें ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी कोशिश करेंगे।...

श्री गांधीने कहा कि इस कानूनसे एशियाई समुदायोंको सन्तोष नहीं होगा, क्योंकि उनका विचार है कि जनरल स्मट्सने समझौतेके समय जो वादे किये थे उनकी शर्तोंको यह भंग करता है, और यह एक ही वर्गके लोगोंके लिए दो प्रकारके विधान प्रस्तुत करता है। यह विधेयक उन एशियाइयोंको संरक्षण प्रदान नहीं करता जो उनके विचारसे देशमें प्रवेशके अधिकारी हैं और स्वेच्छया पंजीयनके लिए नियत की गई तीन महीनेकी अवधि बीत जानेके बाद देशमें आये हैं; और न उन एशियाइयोंको ही संरक्षण प्रदान करता है, जो समझौतेकी तारीखको ट्रान्सवालमें मौजूद थे, परन्तु उन्होंने स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र नहीं लिये। नये विधेयकके अनुसार इन एशियाइयोंका एशियाई कानूनके अन्तर्गत पंजीयन होना है। कुछ मामलोंमें इसका परिणाम एशियाइयोंके लिए अजीब होगा। ऐसे मामले भी हैं जिनमें बेटोंके स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र लिये हैं और पिताओंने, जो तीन महीनेकी अवधिमें उपनिवेशमें नहीं थे, ऐसा नहीं किया है। इसलिए उन्हें पुराने कानूनके अन्तर्गत पंजीयन करानेको कहा जायेगा। एशियाई समाजोंका विचार है कि यह कानून उन एशियाइयोंको जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है, कानूनकी व्यवस्थाओंसे नाममात्रको ही बरी करता है। एशियाइयोंका कहना है कि समझौतेके अनुसार सरकारको दो शर्तें पूरी करनी हैं: एक तो यह कि उन सबपर, जिन्होंने स्वेच्छया पंजीयन करा लिया है, कानून नहीं लागू होना चाहिए। दूसरी यह कि जिन्होंने समझौतेकी व्यवस्थाके अनुसार ट्रान्सवालमें प्रवेश किया हो, उनपर भी स्वेच्छया पंजीयनका तरीका ही लागू होना चाहिए। वे कहते हैं कि इन दोनों ही शर्तोंका ध्यान नहीं रखा गया और फिर युद्ध-पूर्वके एशियाई निवासियोंके लिए, जो अभीतक ट्रान्सवाल वापस नहीं आये हैं, कोई भी व्यवस्था नहीं रखी गई। ऐसे पुराने निवासी यदि पुराना

 
  1. नामोंके लिए देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४३९।