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भेंट 'ट्रान्सवाल लीडर' को

सरकारको हर तरह की सुविधा देनेके लिए तैयार रहे हैं। यह शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अन्तर्गत स्वेच्छापूर्वक किया जा सकता था। अब वह अध्यादेश लगभग रद ही हो चुका है और यदि एशियाई अधिनियम भी रद किया जानेको है तो उसे पूर्णतः रद करना होगा। ऐसी हालत में कठिनाईसे बाहर निकलने का एक ही व्यावहारिक मार्ग है; अर्थात् संसदके अगले सत्र में प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम इस प्रकार संशोधित किया जाये कि उसमें शिनाख्तके लिए आवश्यक धाराओंका भी समावेश हो जाये और भारतीय समाजने १६ वर्ष से कम उम्र के नाबालिगों तथा अधिनियम के अन्तर्गत निश्चित शैक्षणिक कसौटीपर, जो काफी कड़ी है, खरे उतर सकनेवाले भारतीयोंके बारेमें बार-बार जो वक्तव्य दिये हैं, उनका भी खयाल किया जा सके।

जब श्री गांधीसे अपने प्रस्तावको स्पष्ट करनेके लिए कहा गया तब उन्होंने कहा, प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियममें से, जिसके अन्तर्गत मन्त्रीको देशसे निकालनेका प्रबल अधिकार प्राप्त है, सभी काम निकाले जा सकते हैं। सन् १९०७ का एशियाई कानून संशोधन अधिनियम बिलकुल हटा दिया जाये और प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियममें थोड़ा-सा फेरफार कर दिया जाये, जिससे हर एशियाई एक 'निषिद्ध प्रवासी' बन जाये। इसका अर्थ यह हुआ कि उसे उस हालत में यह सिद्ध करना पड़ेगा कि वह उपनिवेशमें रहनेका हकदार है। अगर वह शान्ति-रक्षा अध्यादेशके अथवा १८८५ के कानून ३ के अन्तर्गत दिया गया प्रमाणपत्र पेश कर सके तो उसे अधिवासी प्रमाणपत्र दिया जायेगा। यह अधिवासी प्रमाणपत्र उसके पास पहलेके मौजूद प्रमाणपत्र तथा अन्य कागज-पत्रोंकी जगह ले लेगा और इस नये प्रमाणपत्र में प्राप्तकर्ताकी शिनाख्तके पर्याप्त प्रमाण तो रहेंगे ही। सोलह वर्षसे कम उनके बच्चोंके लिए अधिवासी प्रमाणपत्र लेना आवश्यक नहीं होना चाहिए; किन्तु उनके अभिभावकोंको और माता- पिताओं के नाम जारी किये गये अधिवासी प्रमाणपत्रोंपर ऐसे बच्चोंकी, नाम और तफसीलके साथ, पूरी गिनती दी जायेगी। ऐसे अधिवासी प्रमाणपत्रोंकी खरीद-फरोख्तकी रोक-थामके लिए प्रवासी अधिनियममें काफी कठोर व्यवस्था मौजूद ही है। श्री गांधीने कहा कि इस योजनासे सरकारको जो मिलना उचित है सब मिल जायेगा—अर्थात् इससे एशियाइयोंका आना रुक जायेगा तथा उन सब भारतीयों और एशियाइयोंकी पूरी शिनाख्त तथा पंजीयनकी व्यवस्था हो जायेगी जिन्हें वहाँ रहनेका अधिकार है।

अक्सर कहा गया है कि ट्रान्सवाल चूंकि देशके भीतरी हिस्से में स्थित उपनिवेश है इसलिए वहाँ केप या नेटालकी तरहका प्रवासी अधिनियम नहीं हो सकता। मेरी समझमें यह गलत है। अभिप्राय इतना ही है कि ट्रान्सवालके प्रवासी अधिनियम में केप या नेटालके अधिनियमकी अपेक्षा अधिक सख्तीके साथ शिनाख्तकी व्यवस्था की जानी चाहिए। नेटालके अधिनियम के अनुसार कोई भी भारतीय, किसी भी समय, अपना अधिवासी होना साबित कर सकता है और माँग कर सकता है कि उसे उपनिवेशमें आने दिया जाये। मैंने जो संशोधन सुझाया है उसकी रूसे अमुक अवधि में हरएक भारतीयको अपना अधिवास अथवा निवासका अधिकार प्रमाणित करना पड़ेगा। उस अवधि की समाप्तिपर उसपर सदाके लिए रोक लग जायेगी। निश्चय ही इससे अधिककी जरूरत तो नहीं हो सकती?

[अंग्रेजीसे]
ट्रान्सवाल लोडर, ७-१-१९०८