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२७३. जॉर्ज फेरारके नाम पत्रका सारांश[१]

अगस्त १४, १९०८

एक दूसरे बहुत भीषण संघर्षके प्रारम्भ होनेसे पहले श्री गांधी सर जॉर्ज फेरारको लिखते हैं; क्योंकि विरोधी पक्षके नेताके समक्ष स्थितिकी गम्भीरताको रखना; वैधीकरण विधेयकके प्रति अपनी आपत्तिके मुद्दोंको रखना; और उनपर विचार करनेकी प्रार्थना करना वे अपना कर्तव्य समझते हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफिस, ज्युडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स ३७२२/०८

२७४. माल कुर्क किया जाये तो?

वेरीनिगिंगके भारतीयोंको जेलकी सजा नहीं हुई, सिर्फ जुर्माना हुआ है। यदि वे जुर्माना न दें तो मजिस्ट्रेटने ऐसा हुक्म दिया है कि उनका माल बेचकर जुर्माना वसूल किया जा सकता है। परवाना-कानूनमें तो ऐसी धारा नहीं है किन्तु एक अन्य कानूनके द्वारा मजिस्ट्रेटको यह सत्ता प्राप्त है।

जो-कुछ हुआ उसमें खुशीकी बात यह है कि ऐसे हुक्मसे भारतीय चौंके नहीं हैं प्रत्युत समझ गये हैं कि यह ज्यादा अच्छा हुआ है।

इससे ज्ञात होता है कि सच्ची अमीरी गरीबीमें ही है। कारण, गरीब लोग सरकारके खिलाफ जिस हद तक लड़ सकते हैं उस हद तक साहूकार नहीं लड़ सकते; क्योंकि वे डरते हैं। हम वेरीनिगिंगके भारतीयोंको बधाई देते हैं कि उन्होंने जुर्माना देनेसे इनकार कर दिया है और मजिस्ट्रेटसे माल बेचनेको कह दिया है। माल इस तरह बेच दिया जाये, इसमें हम कोई नुकसान नहीं देखते। कुछ लोगोंका माल बेशक बिक जायेगा। लेकिन ऐसा भी तो नहीं कहा जा सकता कि जेल जानेसे पैसेका कोई नुकसान नहीं होता। इसलिए यदि उतना ही नुकसान मालके नुकसानके रूपमें होता है तो इसमें डरनेकी कोई बात नहीं है। सच तो यह है कि जिस तरह सैकड़ोंको जेलमें नहीं रखा जा सकता, उसी तरह सैकड़ोंका माल भी नहीं बेचा जा सकता। सरकारके पास इसके लिए आवश्यक सुविधा नहीं है। सरकार ऐसा करे तो उसकी प्रतिष्ठाको धक्का लगेगा और, सम्भव है, राज्य भी खोना पड़े।

इसके सिवा, फेरीवालोंसे तो सरकार कुछ वसूल नहीं कर सकती। कोई भी भारतीय नीलामके लिए अपना माल बतानेको बाध्य नहीं है। जिसका माल लेना हो सरकार उसे खुद ढूँढ़कर भले ले ले। लेकिन ऐसा करते-करते वह थक जायेगी और फेरीवाले बिना किसी

 
  1. यह ट्रान्सवालकी घटनाओंके एक संक्षिप्त विवरणसे, जिसे रिचने उपनिवेश-कार्यालयके नाम अक्तूबर ६, १९०८ के अपने पत्रके साथ भेजा था, लिया गया है।