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८. भेंट : रायटरको

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी ८, १९०८]

आज श्री गांधीने यह घोषित किया कि यदि एशियाई पंजीयन अधिनियमका अमल स्थगित कर दिया जाये तो मैं यह जिम्मेदारी ले लूँगा कि दोनों पक्षों द्वारा स्वीकार्य फार्मके मुताबिक प्रत्येक भारतीयका पंजीयन एक मासकी अवधि में हो जाये। तब अधिनियम अनावश्यक हो जायेगा और वापस लिया जा सकेगा।

यदि मेरे द्वारा दिये गये वचनका ईमानदारीसे पालन नहीं हुआ तो मैं प्रस्तुत अधि- नियमको पूर्ण रूपसे लागू करनेमें सरकारका हाथ बटाऊँगा। भारतीय नेताओंका मुख्य उद्देश्य अनिवार्यताके तत्वका निवारण है। जो समझौता सुझाया गया है, वही एकमात्र ऐसा समझौता है कि जिसे भारतीय स्वीकार करनेके लिए राजी हैं; और उसकी शर्तोंके विषय में सरकार के साथ विचार-विमर्शकी व्यवस्थाका प्रयत्न सम्भवतः किया जायेगा। भारतीय समाजका विचार है, ट्रान्सवालमें भारतीयोंके लुक-छिपकर प्रवेश तथा शिनाख्त के प्रश्नकी जाँच उच्च न्यायालयके किसी न्यायाधीश द्वारा करानेका मेरा सुझाव सरकारको परिस्थितिपर पुनर्विचार करनेका अवसर देगा।

[अंग्रेजीसे]
इंडिया, १०-१-१९०८
 

९. जनरल स्मट्सका भाषण

[जनवरी १०, १९०८ के पूर्व]

जनरल स्मट्सने लम्बा भाषण दिया है। 'स्टार' और [ट्रान्सवाल] 'लीडर' ने उसका उत्तर श्री गांधी से ली गई एक भेंटके रूपमें प्रकाशित किया है। दूसरी जगह उसका अनुवाद दिया जा रहा है। भाषण बहुत समझने लायक है। चार महीने पहले स्मट्स साहब जो जोर दिखाते थे वह अब नहीं रहा। वे उसी भाषणमें एक जगह कहते हैं कि "हजारों भारतीय जेल में कैसे डाले जा सकते हैं। जेल ही कहाँ हैं? इतनोंको देश-निकाला भी कैसे दिया जा सकता है?" दूसरी जगह कहते हैं कि यदि भारतीय पंजीयन नहीं कराते तो अन्तमें यह मार्ग अपनाना ही पड़ेगा। आजतक बड़ी सरकारने मदद की है, अब करेगी या नहीं सो

१. यह लेख "श्री गांधी द्वारा समझौतेका सुझाव " शीर्षकसे छपा था।

२. उनका ४ जनवरीको दिया गया मेविलका भाषण, देखिए पृष्ठ १३ पर दी गई पादटिप्पणी।

३. स्पष्ट है कि यह और इसके बादके दो लेख १० जनवरीसे, जबकि गांधीजीपर मुकदमा चला था और उन्हें सजा हुई थी, पहले ही लिखे गये थे।

४. देखिए "भेंट : 'स्टार' को" पृष्ठ ९-१३ और "भेंट : 'ट्रान्सवाल लीडर' को" पृष्ठ १३-१९