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२७६. भाषण: सार्वजनिक सभामें[१]

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त १६, १९०८ ]

गत रविवार [ १६ अगस्त, १९०८ ] को दोपहरके समय ऐसी घटना देखनेमें आई जैसी, आशा है, इस देशमें घटित होनेकी आवश्यकता कदाचित् कभी न होगी। कोई तीन हजार ब्रिटिश भारतीय एक खास उद्देश्यसे...केवल [पंजीयन प्रमाणपत्रोंको] आगकी लपटोंमें झोंकने का इरादा लेकर इकट्ठे हुए थे।...जो स्थान फोर्ड्सबर्ग मस्जिदसे पश्चिमकी ओर बाड़ेके भीतर दिखता है, वह भारतीय समाजके सदस्योंसे भरा हुआ था...। इससे आश्चर्यजनक राष्ट्रीय एकता---ऐसी एकता जिसपर मातृभूमि उचित गर्व कर सकती है---प्रकट होती थी।

मंचपर कांग्रेसके नेता...ट्रान्सवालके अनेक प्रमुख भारतीय...चीनी संघके अध्यक्ष श्री लिअंग क्विन और श्री गांधी मौजूद थे। इस विशाल सभाकी अध्यक्षता ईसप इस्माइल मियाँने की। सम्वाददाताओंकी मेजसे आगे ऊपर उठे हुए और प्रतीक्षा करते हुए असंख्य चेहरे थे, जिनपर वृढ़ता और कटुतापूर्ण प्रसन्नता गहरी अंकित थी। सबसे अगली पंक्तिमें एक दर्जन प्रतिनिधि चीनी नेता कठोर मुख-मुद्रा बनाये बैठे थे और उस महत्वपूर्ण क्षणकी प्रतीक्षा कर रहे थे। पहले अध्यक्षने गुजरातीमें संक्षिप्त भाषण दिया और तब श्री एन० ए० कामाकी मार्फत सभा करनेके कारणोंपर संयत भाषामें प्रकाश डाला।... फिर श्री गांधीने भाषण दिया। उसके बाद स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र एक बड़े कड़ाहमें डाले गये; उन्हें मिट्टीके तेलसे तर किया गया और श्री ईसप मियाँने समाजके नामपर उनमें आग लगा दी।[२] श्री एस० हेलूने जिन्होंने, यह स्मरण होगा, अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयन कराया था, अपना गुलामीका पट्टा खुले आम जलाया और लपटोंपर तेल उँडेला।

श्री गांधीका भाषण

आज मैं अपने सरपर एक अत्यन्त गम्भीर जिम्मेवारी ले रहा हूँ। मैं कुछ समयसे अपने देशभाइयोंको जो सलाह देता रहा हूँ उसके लिए मेरे मित्र मुझे भला-बुरा कह रहे हैं। और जो अपनेको मेरा मित्र नहीं मानते वे मेरी हँसी उड़ा रहे हैं। इसके बावजूद, पूरी तरह विचार

 
  1. यह रिपोर्ट १७-८-१९०८ के ट्रान्सवाल लीडरमें छपी रिपोर्टसे मिला ली गई है और उसमें जो जानकारी अधिक थी वह इसमें जोड़ दी गई है। इस सभामें पास किये गये प्रस्तावोंके लिए देखिए परिशिष्ट ९।
  2. ट्रान्सवाल लीडरने कार्रवाईके इस भागका वर्णन इस प्रकार किया है: "तब एक बड़े तिपाये बर्तनमें पंजीयन प्रमाणपत्र, जो कुल १,३०० के लगभग होंगे, और व्यापारिक परवाने, जिनकी संख्या लगभग ५०० होगी, भर दिये गये। फिर उनपर मिट्टीका तेल उड़ेला गया और उन प्रमाणपत्रों एवं परवानोंमें आग लगा दी गई। उस समय असीम उत्साह प्रकट किया गया। भीड़ने बहुत हर्ष-ध्वनि की; चिल्लाते-चिल्लाते लोगोंके गले बैठ गये। टोप उछाले गये और सीटियाँ बजाई गई। एक भारतीयने, जो प्रमुख विरोधी बताया जाता था, मंचपर आकर अपना प्रमाणपत्र हाथमें ऊँचा उठाकर स्वयं जलाया। उसके बाद चीनी मंचपर आये और उन्होंने दूसरे लोगोंके प्रमाणपत्रोंके साथ अपने प्रमाणपत्र भी आगके हवाले कर दिये....।