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भाषण: सार्वजनिक सभामें

और, कहना चाहिए, प्रार्थना करनेके बाद भी, मैं आपके सम्मुख आज फिर उसी सलाहको दुहराने जा रहा हूँ। और वह सलाह यह है, जैसा कि आप जानते हैं, कि हमारी लड़ाईसे सम्बन्धित घटनाओंका रुख बदल गया है, हमें अपने प्रमाणपत्रोंको जला देना चाहिए। [ हर्षध्वनि ] मुझसे कहा जाता है कि अपने देशभाइयोंको मैंने जो सलाह दी है उससे, यदि उन्होंने उसपर अमल किया तो, मैं उन्हें अवर्णनीय कष्टोंमें डालनेका साधन बन सकता हूँ। मैं यह अच्छी तरह जानता हूँ। परन्तु मैं यह भी जानता हूँ कि अगर आप प्रमाणपत्रोंको जलानेसे अवर्णनीय कष्टोंमें पड़ जायेंगे तो इन प्रमाणपत्रोंको रखनेसे और एशियाई कानूनको या वैधीकरण विधेयकको, जिसका कल दूसरा वाचन होने जा रहा है, माननेसे मेरे देशवासी अवर्णनीय असम्मान निमन्त्रित करेंगे। इसलिए मेरी वाणीमें जितना भी बल है वह सारा बल लगाकर मैं आपसे कह देना चाहता हूँ कि इस असम्मानको निमन्त्रित करनेके बजाय मेरे देशवासियोंके लिए उनपर जो कष्ट आयें उन्हें सह लेना बहुत अधिक अच्छा होगा। फिर, यहाँ ट्रान्सवालमें मेरे देशभाइयोंने यह शपथ ले ली है कि वे एशियाई कानूनको नहीं मानेंगे। इस शपथके केवल शब्दों का नहीं, उसकी आत्माका पालन उन्हें करना है। अगर मैं आपको यह बुरी सलाह दूँ या अन्य कोई दे कि आप स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्र वैधीकरण विधेयकको स्वीकार कर सकते हैं और यह जानकर खुश हो सकते हैं कि आप एशियाई कानूनसे मुक्त हो गये हैं तो मैं अपने-आपको अपने देशवासियोंके प्रति, ईश्वरके प्रति और अपनी शपथके प्रति द्रोही कहूँगा। मैं आपको ऐसी सलाह कभी नहीं दूँगा, फिर भले ही इन प्रमाणपत्रोंके जलानेपर आपपर कितने ही कष्ट क्यों न आयें। परन्तु एक बात याद रखिए। इन प्रमाणपत्रोंके जला देनेके बाद जबतक इस बारेमें सरकारके साथ न्याययुक्त और सम्मानपूर्ण समझौता नहीं हो जाता तबतक आपको कभी इन प्रमाणपत्रोंसे लाभ नहीं उठाना है। आज जिन प्रमाणपत्रोंको आप जला रहे हैं, कल पाँच शिलिंग शुल्क देकर उनकी दूसरी प्रति आपको दफ्तरसे मिल सकती है। मैं कहता हूँ कि सरकार आपको इनकी नकलें मुफ्त भी दे देगी, क्योंकि अभी वह विधेयक कानून नहीं बना है। परन्तु अगर इस विशाल जन-समुदायमें कोई ऐसा भारतीय हो, जो आज शर्मकी वजहसे, संकोचमें आकर अथवा ऐसे ही किसी अन्य कारणसे अपना प्रमाणपत्र जलाकर कल उसकी नकल लेनेकी इच्छा रखता है तो मैं जोर दे कर कहता हूँ कि वह अभी सामने आ जाये और कह दे कि वह अपना प्रमाणपत्र नहीं जलवाना चाहता। परन्तु अगर आप इस बातपर दृढ़ हैं कि आप सरकारके पास इन प्रमाणपत्रोंकी नकल माँगनेके लिए नहीं जायेंगे तो कहूँगा कि आपने बहुत अच्छा किया है। ब्रिटिश भारतीय संघकी सभामें हमने जब यह निश्चय किया, उससे पहले आप कितने ही भारतीयोंको जेल भेज चुके थे। श्री सोराबजीकी याद कीजिए। धन्य हैं वे कि आपकी लड़ाई लड़नेके लिए चार्ल्सटाउनसे आये। (हर्ष-ध्वनि)। हममें से कितने ही गरीब भाई अपनी कौमकी सेवाके लिए और इस उद्देश्यसे जोहानिसबर्ग फोर्ट [ जेल ] में गये कि उनके कष्टोंको देखकर सरकार द्रवित हो एवं हम उपनिवेशमें आत्मसम्मान और प्रतिष्ठाके साथ रह सकें। क्या स्वेच्छया पंजीयन प्रमाणपत्रोंको सम्भाल कर बैठे रहना और अपने अपेक्षाकृत गरीब देशवासियोंको अथवा उनको, जो तीन महीनेकी अवधिके बाद इस देशमें प्रवेश करें, जेलमें जाने देना या उनसे यह आशा करना कि वे एशियाई कानूनके आगे सिर झुका दें, हमें शोभा देता है? मैं जोरके साथ कहता हूँ, "नहीं"। मैं अपनी सजाकी अवधि पूरी होनेसे पहले जेलमें जो कष्ट थे