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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

साफ-साफ कह दी है और आज यहाँ उसे फिर दोहरा रहा हूँ। जब मैं उनके कामकी तुलना कैप्टन हैमिल्टन फाउलके[१] कामसे करता हूँ तो मैं केवल इतना ही कह सकता हूँ कि इनके और उनके बीच बड़ा अन्तर है। अगर कैप्टन हैमिल्टन फाउलके हाथोंमें सत्ता होती तो आज जिन मुसीबतों का सामना हमें करना पड़ता है अथवा सरकारको भी करना पड़ रहा है वे खड़ी ही नहीं होतीं। जैसा कि मैंने कई बार कहा है, श्री चैमने वैसे काफी अच्छे आदमी हैं। उनपर कोई शक करनेकी कहीं गुंजाइश नहीं है। परन्तु एक महकमेके प्रधानके लिए इतना ही काफी नहीं है। उसे अपने कामकी पूरी-पूरी जानकारी होनी चाहिए। जिस कानूनका अमल वह करना चाहता है या जिसका अमल करनेकी जिम्मेवारी उसके सिरपर है उसका भी उसे अच्छा ज्ञान होना जरूरी है। फिर उसे अपना दिमाग ठण्डा रखना चाहिए, और अपने कर्तव्योंका पालन योग्यतापूर्वक करनेकी क्षमता उसके अन्दर होनी चाहिए। श्री चैमनेकी आजमाइश हो चुकी है और वे इसमें अयोग्य पाये गये। जनरल स्मट्सके दिलमें उनके प्रति भले ही कितना ही प्रेम हो, परन्तु उनके महकमेके कामके बारेमें अत्यन्त निकटकी जानकारीके बाद मैं उनपर यह आरोप लगा रहा हूँ। इस मौकेपर अपने आरोपको सिद्ध करनेके लिए मैं कोई उदाहरण नहीं पेश करना चाहता। इतना जरूर कहना चाहता हूँ कि जबतक वे इस महकमेसे हटाये नहीं जायेंगे--- मैं नहीं चाहता कि किसीकी रोटी छिन जाये---परन्तु कमसे-कम जबतक इस महकमेसे उनको हटा नहीं दिया जायेगा, किसीको शान्ति नसीब होनेवाली नहीं। इतना ही नहीं, श्री चैमने एक ऐसी बात कर गये, जिसमें उन्होंने अपनेको साधारण मनुष्यतासे भी गिरा दिया। न्यायाधीशके समक्ष उन्होंने एक ऐसे हलफनामेपर अपने हस्ताक्षर कर दिये, जिसमें लिखा था कि ३ फरवरीकी मुलाकातके समय वे भी हाजिर थे और यह कि जनरल स्मट्सने कभी यह वचन नहीं दिया कि वे उस कानूनको रद कर देंगे। मैं कहता हूँ कि यह हलफनामा सरासर झूठा है। जनरल स्मट्सने जब यह वचन दिया तब उसे उन्होंने ध्यानपूर्वक सुना। यही नहीं; मेरे सामने उसे फिरसे उन्होंने कह सुनाया। उन्होंने इस वचनका उल्लेख मेरे सामने एक बार नहीं, बारह बार किया और हर बार कहा कि जनरल स्मट्स इस वचनको पूरा करके बतायेंगे और वे कानूनको रद करानेवाले हैं। एक अवसरपर मेरा खयाल है, एक देशभाई भी मेरे साथ थे। और उन्होंने कहा था, "परन्तु याद कीजिए, जनरल स्मट्सने यह भी कहा था कि जबतक उपनिवेशमें एक भी ऐसा एशियाई होगा जिसने स्वेच्छया पंजीयनके लिए दरख्वास्त नहीं दी है तबतक उसके खिलाफ कानूनका अमल जरूर होगा।" आज स्थिति यह है कि जहाँतक मुझे पता है, इस उपनिवेशमें एक भी ऐसा उल्लेखनीय एशियाई नहीं है जिसने स्वेच्छया पंजीयनके लिए अर्जी नहीं दी हो। अब मैं माँग कर रहा हूँ कि यह वचन पूरा किया जाये। और अगर श्री चैमनेने वह हलफिया बयान दिया है, और सचमुच उन्होंने दिया ही है, तो मैंने उनकी जो योग्यताएँ गिनाईं, उनमें एक और बढ़ जाती है। इसलिए मैं फिर कहता हूँ कि जबतक श्री चैमनेको उस महकमेसे नहीं हटाया जाता तबतक उपनिवेशमें किसी प्रकार शान्ति नहीं हो सकती। [ तालियाँ। ][२]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-८-१९०८
 
  1. परवाना अधिकारी।
  2. बादमें गांधीजीने सभामें गुजरातीमें भाषण दिया। इस भाषणका पाठ उपलब्ध नहीं है।