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२८१. भेंट : 'स्टार' को[१]

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त २१, १९०८ ]

ट्रान्सवालका एशियाई समाज कर्नल सीली द्वारा प्रस्तुत किया गया स्वेच्छया पंजीयन सम्बन्धी विधेयक स्वीकार नहीं करेगा। अतः अनाक्रामक संघर्ष जारी रहना अनिवार्य है।

इस नीतिका निर्धारण समाजके प्रवक्ता श्री मो० क० गांधीने आज 'स्टार' के प्रतिनिधिसे भेंटके दौरान दिये गये अपने एक वक्तव्यमें किया।

यह नया विधेयक, दो बातोंको छोड़ कर हर तरहसे मेरे देशवासियोंके लिए काफी सन्तोषप्रद माना जाता; किन्तु १९०७ के एशियाई अधिनियमका रद न होना और उच्च-शिक्षा प्राप्त एशियाइयोंके ट्रान्सवालमें रहनेकी व्यवस्थाका अभाव, ये दो बातें एशियाइयों द्वारा विधेयककी स्वीकृतिकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण मसले हैं। भारतीयोंके नुक्तेनजरसे एशियाई अधिनियमकी मंसूखीका सवाल बहुत ही महत्वपूर्ण है। उनका दावा है कि मंसूखीका वादा किया गया था, और सम्मानका यह एक सवाल पूरा किया जाना चाहिए था। व्यावहारिक राजनीतिके एक प्रश्नकी दृष्टिसे, उसका अव्ययन करनेके बाद, मुझे कोई वजह नहीं दिखाई देती कि एशियाई अधिनियमको विधि-पुस्तिकामें एक पूर्णतः अप्रचलित कानूनके रूपमें क्यों रखा जाये। इससे अनेक हास्यास्पद स्थितियाँ उत्पन्न होंगी। यदि अधिनियमको मैंने सही-सही समझा है, तो किसी एशियाईको पुराने अधिनियमके अन्तर्गत या नये विधेयकके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र देनेका विकल्प प्राप्त है। यदि वह पुराने अधिनियमका लाभ लेना चाहे---बशर्ते कि यह लाभ हो---और प्रार्थनापत्र देनेसे पहले वह उपनिवेशमें प्रवेश करे तो उसे कोई नहीं रोक सकता किन्तु नये विधेयकके अन्तर्गत वह दक्षिण आफ्रिकाके किसी भी स्थानसे पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र भेज सकता है, किन्तु ट्रान्सवालसे नहीं। यह मुझे हास्यास्पद प्रतीत होता है, और इससे ऐसी जाल-फरेबकी कार्रवाइयोंके लिए रास्ता खुल जायेगा जिन्हें सभी पक्ष रोकना चाहते हैं।

एक मुख्य प्रश्न

उच्च शिक्षा प्राप्त भारतीयोंके प्रवेशका प्रश्न भी हमारे लिए अत्यन्त महत्वका है, किन्तु जहाँतक मैं देख सकता हूँ, यूरोपीयोंके लिए उसका कोई महत्व नहीं है। भूलना नहीं चाहिए कि युद्धसे पहले ब्रिटिश भारतीय उपनिवेशमें प्रवेश करनेको बिलकुल स्वतन्त्र थे। युद्धके बाद शिक्षित भारतीयोंका प्रवेश निषिद्ध नहीं था, किन्तु किसी भी यूरोपीयकी भाँति उनपर भी शान्ति-रक्षा अध्यादेश लागू होता था। १९०७ का एशियाई अधिनियम केवल अधिवासी एशियाइयोंपर लागू होता था। जैसा कि जनरल स्मट्सने स्वयं स्वीकार किया, वह [ अधिनियम ] एशियाई आव्रजन नियन्त्रित नहीं करता था। प्रवासी अधिनियम आज भी उन एशियाइयोंके प्रवेशका निषेध नहीं करता जो शैक्षणिक योग्यताकी कसौटीपर खरे उतरते हैं। अतः साफ है कि यह निषेध एशियाई अधिनियमकी उपस्थितिका परिणाम है, जिसको ब्रिटिश भारतीय स्वीकार नहीं करेंगे।

 
  1. यह भेंट इंडियन ओपिनियन (अंग्रेजी) में "नो सरेंडर" शीर्षकसे प्रकाशित हुई थी।