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नेटालकी बहादुरी

प्रतिबन्धक अधिनियमको उपनिवेश-सचिव द्वारा की गई व्याख्याके कारण जरूरी हो गई है। और वे अच्छी तरह जानते हैं कि एशियाई अधिनियमके रद हो जानसे प्रवासी प्रतिबन्धक कानूनके अन्तर्गत शिक्षित भारतीयोंका प्रवेश पूरी तरह सम्भव हो जाता है। इसलिए मुझे तो इसमें ढिठाईकी कोई बात नजर नहीं आती। उलटे, मैं तो यह कहने का साहस करता हूँ कि विधान-मण्डलने पहले तो हमसे सब छीन लिया है और उसके बाद अब कण-कण करके भीखकी तरह "रियायतें" देना चाहती है---और अभी भी हम जिसे मुख्य वस्तु मानते हैं उसे देनेसे इनकार कर रही है---और फिर अपनी पीठ खुद ही ठोककर कहना चाहती है, "वाह री हमारी उदारता!" इसलिए यदि नये विधेयकमें मेरे देशकी बहुत सौम्य माँग सम्मिलित नहीं की जाती तो मुझे डर है--- यद्यपि मुझे उसका बहुत खेद है---कि हमें निष्क्रिय प्रतिरोधकी लड़ाई फिर शुरू करनी पड़ेगी। जनरल स्मट्स उसे अराजकता, स्वेच्छाचार और युद्ध की घोषणा कहते हैं।[१] हम तो उसे तपस्या कहते हैं और अपने सिरजनहारके आशीर्वादकी माँग करते हैं क्योंकि हमारा सारा आधार उसीकी कृपापर है। सच तो यह है कि यह ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ जनरल स्मट्स द्वारा की गई युद्ध घोषणा है।

[ अंग्रेजीसे ]
ट्रान्सवाल लीडर, २२-८-१९०८

२८३. नेटालकी बहादुरी

अब प्रशंसा किसको की जाये? एकसे दूसरा बाजी मारे ले जा रहा है। भारतीय भाग्यका सितारा ऐसा चमक उठा प्रतीत होता है। नेटालने कमाल किया है। श्री दाउद मुहम्मद, श्री पारसी रुस्तमजी, श्री एम० सी० आँगलिया---ये जेल जानेके लिए निकलें, उनके साथ भारतीय युवक हो लें और उनको विदाई देनेके लिए सैकड़ों लोग स्टेशनपर एकत्रित हों, यह दृश्य शत्रुका कलेजा दहला देनेवाला है। जो व्यक्ति ऐसा करनेके लिए बैठे, कोई उसका दुश्मन हो ही कैसे सकता है? श्री दाउद मुहम्मद बुजुर्ग माने जाते हैं। उनकी स्त्रीका प्रसवकाल निकट है। ऐसी स्थितिमें श्री दाउद मुहम्मदने उन्हें छोड़ा है, और देशसेवाके लिए कूच कर दिया है। श्री पारसी रुस्तमजी चंद घंटोंमें ही जेल जानेको तैयार हो गये और "जेल चलो" की रणभेरी बजाने लगे। श्री आँगलिया अपना कारोबार छोड़कर जेल जानेके लिए निकल पड़े। इसमें सराहना किसकी की जाये? बहादुरीका सेहरा किसके सिर बाँधा जाये? जहाँ सभी वीर हों, वहाँ प्रशंसा कैसी? भारतीयोंकी ऐसी स्थिति होने लगी है। हम आशा करते हैं कि इसी प्रकार हमेशा चलता रहेगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २२-८-१९०८
 
  1. "यह आन्दोलन एक प्रकारका युद्ध ही है और इसका मतलब सचमुच अराजकता है..."ये उद्गार एशियाई पंजीयन संशोधन विधेयकको प्रथम वाचनके लिए सदनमें पेश करते हुए, अगस्त २१ को, जनरल स्मट्सने व्यक्त किये थे।