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२८४. भाषण: सार्वजनिक सभामें[१]

[ जोहानिसबर्ग
अगस्त २३, १९०८ ]

दुर्भाग्यसे गत रविवारको, [ २३ अगस्त ] जैसा कि संघके अध्यक्षने दुःखके साथ कहा, एक बड़ी सार्वजनिक विरोधसभा करनेकी आवश्यकता हुई। मस्जिदके प्रांगणमें गत सप्ताह जो भीड़ इकट्ठी हुई थी, शायद उससे भी ज्यादा लोग मौजूद थे। जनरल स्मट्सने अपना नया विधेयक प्रस्तुत कर दिया है, किन्तु चूँकि उससे एशियाई अधिनियम रद नहीं होता और चूँकि उसमें उच्च शिक्षा प्राप्त एशियाइयोंके स्वातन्त्र्य और अधिकारोंकी कोई व्यवस्था नहीं है, इसलिए नये कानूनको स्वीकार करना सम्भव नहीं है। इसीलिए रविवारको सभा की गई। जब पठान नेताओंने अपनी पहली भूलें[२] स्वीकार की और लड़ाईमें अन्ततक साथ देनेका अपना निश्चय घोषित किया तो सभामें अकस्मात् एक नया रंग आ गया। उपस्थित लोगोंमें से जिन्होंने लोगोंको प्रोत्साहन दिया, उनमें डर्बनके नेता भी थे। वे उस क्षणकी प्रतीक्षा उत्कंठासे कर रहे थे, जब वे अपनी देशभक्तिका जुर्माना देनेके लिए न्यायालयमें बुलाये जायेंगे...। यह कहना भी आवश्यक है कि सभा विसर्जित होनेसे पूर्व लगभग ५२५ और प्रमाणपत्र हर्षध्वनियोंके बीच अग्निको भेंट किये गये। इनको जलानेका काम श्री एस० हेलू और श्री यू० एम० शेलतने किया।

श्री गांधीका भाषण [३]

[ ईसप मियाँके बाद श्री गांधीने भाषण दिया। उन्होंने कहा: ] मेरा खयाल है कि ट्रान्सवालमें बसे हुए एशियाई समाजसे सम्बन्धित पिछले दिनों जो घटनाएँ घटी हैं उनके विषयमें कुछ बातें आपसे कह देना जरूरी है। वैधीकरण विधेयक सदनोंमें लगभग सर्व- सम्मतिसे मंजूर कर लिया गया। फिर भी मुझे अपने देशभाइयोंको यह सलाह देनेकी जिम्मेवारी लेनी ही पड़ी है कि वे अपने प्रमाणपत्रोंको जलानेका काम जारी रखें और सरकारको दिखा दें कि जबतक ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा की गई माँगों को पूरी तरह नहीं मान लिया जाता तबतक वे अपने कष्ट-सहनके मार्गपर दृढ़ रहेंगे। सभापतिजीने[४]

 
  1. इसका प्रारम्भिक भाग (जो ऊपर काले टाइपमें दिया गया है) इंडियन ओपिनियनके, २९-८-१९०८ के अंकसे लिया गया है, और गांधीजीका भाषण १२-९-१९०८ के अंकसे लिया गया है।
  2. यह संकेत अनुमानतः मीर आलम और उसके साथी पठानोंको ओर है। स्पष्ट है कि पठानोंको गांधीजीने जो सलाह दी थी ( देखिए पृष्ठ २४४-४५ ) उसका उनपर प्रभाव हुआ था। तथापि, गांधीजी कहते हैं कि वह १६ अगस्तवाली सभा थी जिसमें मीर आलमने स्वीकार किया कि गांधीजीको मार कर उसने गलती की थी, और इस स्वीकारोक्तिके साथ ही उसने अपना प्रमाणपत्र जलानेके लिए दे दिया। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २७।
  3. यह भाषण २४-८-१९०८ के ट्रान्सवाल लीडरमें प्रकाशित गांधीजीके भाषणकी रिपोर्टसे मिला लिया गया है।
  4. ईसप मियाँ।