पूर्ण नागरिकताके योग्य बना रही है? क्या वह हमें इसकी कोई आशा भी दिला सकती है? अगर वह दिला सकती है तो इतनी नाराजगी क्यों है और जब जनरल स्मट्स साझेदारीकी बातकी खिल्ली उड़ाते हैं तब सदनमें इस तरह देर तक करतल ध्वनि क्यों होती है? हाँ, हम जरूर साझेदारी चाहते हैं। ब्रिटिश झंडेके नीचे इस या अन्य किसी देशमें ब्रिटिश भारतीय गुलाम बनकर नहीं रहेंगे। वे इस देशमें और ब्रिटिश साम्राज्यके अन्तर्गत अन्य किसी भी देशमें मनुष्यकी हैसियतसे ही रहनेकी माँग करेंगे। अगर हम यह माँग नहीं करते तो मेरा खयाल है कि हम ब्रिटिश नागरिक कहलाने की पात्रता ही नहीं रखते। और इस बातको ध्यानमें रखते हुए मैं सर्वशक्तिमान प्रभुसे हार्दिक प्रार्थना करता हूँ कि मेरे देशभाई पूर्णतः ब्रिटिश नागरिकके रूपमें रहें और जबतक हम अपने आपको ब्रिटिश नागरिकोंके अधिकार नहीं दिला लेते, तबतक हमें काम करते जाना है। ( करतल ध्वनि )।[१]
जो पत्र सचमुच एक निजी पत्र था, उसको जनरल स्मट्सने "अन्तिम चुनौती" कहा है। ( हँसी । ) यह मूर्खतापूर्ण है। ऐसा कोई इरादा नहीं है। सरकार और उपनिवेशी हमारा विश्वास करें, वे यह विश्वास करें कि हम ईमानदारीसे बरतेंगे और भारतीय समाजकी कानूनको रद करने और उच्च-शिक्षा प्राप्त भारतीयोंके दर्जेको कायम रखनेकी बहुत ही उचित माँगोंको वे मान्य करें। वे उन्हें दूषित प्रतिबन्धको स्वीकार करनेके लिए न कहें। मेरा विश्वास है कि सोराबजीको प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अन्तर्गत देशमें रहनेका अधिकार है, क्योंकि इस मुद्देको अभीतक चुनौती नहीं दी गई है। जो लोग देशमें रहें और जो पीछे आयें उनसे मनुष्योंका-सा व्यवहार किया जाये, कुत्तोंका-सा नहीं।
इंडियन ओपिनियन, २९-८-१९०८
१२-९-१९०८
२८५. पत्र: उपनिवेश-सचिवको[२]
जोहानिसबर्ग
अगस्त २४, १९०८
प्रिटोरिया
महोदय,
कल जो सार्वजनिक सभा[३] हुई उसका विवरण और उसमें जो प्रस्ताव पास हुए, उनको इस पत्रके साथ संलग्न कर रहा है। सभामें तीन हजारसे अधिक भारतीय उपस्थित थे। जहाँतक मैं समझ सका हूँ, जो लोग उस सभामें उपस्थित थे उनकी भावना सुनिश्चित है।