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११. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी[१]

[ जनवरी १०, १९०८ के पूर्व ]

पैसिव रेजिस्टेन्स

सम्पादकने 'पैसिव रेजिस्टेन्स' का गुजराती शब्द माँगा है। एक शब्द मेरे पास आया है, जो खराब नहीं है; यद्यपि उसमें सारा अर्थ नहीं आता। फिर भी अभी तो उसे काम में लाता हूँ। वह शब्द है 'सदाग्रह'। इसके बदले 'सत्याग्रह' को कुछ और अच्छा मानता हूँ। किसी वस्तुके खिलाफ जोर लगाना 'रेजिस्टेन्स' कहलाता है। इस लेखकने उसे आग्रह कहा है; और सच्चा आग्रह सत् अथवा सत्य आग्रह हुआ। 'पैसिव रेजिस्टेन्स' को लेखकने अच्छा आग्रह कहा है। 'पैसिव' का पूरा अर्थ इसमें नहीं आता, किन्तु इनामी शब्द मिलने तक 'सत्याग्रह' काममें लायेंगे।

खैर, सत्याग्रहका जोर इस समय तो बहुत दीख रहा है। संसार भरमें भारतीय सत्याग्रहियोंका नाम सुनाई दे रहा है। यही नहीं बल्कि सब लोग हमारे पक्षमें बोलने लगे हैं। यह प्रश्न समस्त ब्रिटिश राज्यसे जुड़ा हुआ माना गया है। दक्षिण आफ्रिका में 'ब्लूमफॉटीन फ्रेंड', 'ट्रान्सवाल लीडर', 'प्रिटोरिया न्यूज़', 'केप टाइम्स', 'नेटाल-विटनेस', 'टाइम्स ऑफ नेटाल', 'नेटाल मर्क्युरी'--ये सब अखबार साफ-साफ सरकारसे कह रहे हैं कि कानूनमें परिवर्तन करना और भारतीयोंके साथ सुलह करना उसका कर्त्तव्य है । ये सभी अखबार कहते हैं कि अगर सरकार सुलह नहीं करेगी तो इससे पूरे ब्रिटिश राज्यको धक्का लगेगा और भारत जाग जायेगा। 'जाग जायेगा', ये शब्द भारतीयोंके लिए ऐसे हैं कि वे चौंक उठें; फिर भी, वे 'जाग जायेंगे,' इसमें तो सन्देह नहीं है--यदि भारतीय कौम आखिरी बोझा उठा पाये तो।

'स्टार' आदि जो अखबार बहुत खिलाफ बोलते थे वे अब मध्यम पड़ गये हैं। वे भारतीयोंकी बहादुरीका सम्मान करते हुए कहते हैं कि भारतीयोंमें जो गुण पहले कभी देखने में नहीं आये वे अब दीप्त हो उठे हैं।

जोहानिसबर्ग के अखबारोंमें अच्छा लिखने वाले चर्चाकारोंकी संख्याका अब पार नहीं रहा। बहुत-से सुप्रसिद्ध लेखक कह रहे हैं कि स्थानिक सरकार समझौता करनेके लिए बद्ध है। पादरियोंमें हलचल मची हुई है कि भारतीयोंकी धार्मिक भावनाको ठेस नहीं पहुँचानी चाहिए।

विलायत में

विलायतका तो पूछना ही क्या? करीब करीब हरएक अखबार भारतीयोंकी तरफदारी कर रहा है। श्री रिचने सारे इंग्लैंडमें आग भड़का दी है। इंग्लैंडके विचारोंको रायटर तारसे भेजता है। 'टाइम्स' की माँग है कि चाहे जिस तरहसे हो, बड़ी सरकारको भारतीयोंकी सुनवाई करनी ही चाहिए। यह सत्य-आग्रहकी बलिहारी है। यह लिखते समय कानोंमें आवाज गूँज रही है कि सत्यका रक्षक सदैव ईश्वर है; और यहाँतक हमारा आ पहुँचना सत्यकी

  1. ये साप्ताहिक संवादपत्र "जोहानिसबर्ग संवाददाता द्वारा प्रेषित" रूपमें इंडियन ओपिनियन में प्रकाशित किये जाते थे। पहला संवादपत्र मार्च ३, १९०६ को छपा था। देखिए खण्ड ५, पृष्ठ २१५-६।