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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जय प्रकट करता है। अब कहीं हार भी जायें तो इससे सत्यके गौरवपर आँच नहीं आती। लेकिन अपने असत्य, चालबाजी, फूट और भयके कारण हम हार सकते हैं। इस समयके लक्षण हारनेके नहीं हैं। भारतीय कौम बड़ा जोर लगा रही है। सभाएँ होती ही रहती हैं। उनमें सैकड़ों आदमी आते हैं। वे सब ऐसा कहते रहते हैं कि हम जेल जायेंगे, देश-निकाला भुगतेंगे, पर कानूनके आगे नहीं झुकेंगे। इतने सारे लोग रामसुन्दरकी तरह केवल नाटक करते हैं, ऐसा मैं तो नहीं मान सकता।

विराट सार्वजनिक सभा

पहली तारीखको जो विराट् सार्वजनिक सभा हुई थी उसमें कमसे-कम २,५०० लोग रहे होंगे। सब लोगों में जोश था। उसका पूरा विवरण सम्पादक अन्यत्र देंगे। मैं तो इतना ही उल्लेख करता हूँ कि उस सभामें श्री डेविड पोलक (सम्पादक नहीं), 'रैंड डेली मेल' के सहायक सम्पादक, उसके चित्रकार, और चन्द दूसरे गोरे भी थे। ये सभी खास तौर से देखने के लिए आये थे। दूसरे नगरोंसे भी बहुत-से भारतीय आये हुए थे।

कुमारी स्लेशिनका भाषण

कुमारी स्लेशिन[१] बीस वर्षकी एक कुमारिका है। उसने हमारे समाजके लिए जितना काम किया है, उसका अन्दाज बहुत थोड़े भारतीयोंको है। यह महिला जो करती है सो वेतनके लिए नहीं; बल्कि इसलिए करती है कि उसमें बहुत सहानुभूति है। जो-जो काम इसे सौंपा जाता है उसे यह हर्षके साथ करती है। इसने पिछली सार्वजनिक सभामें भाषण करनेका इरादा किया। और जो अनुवाद नीचे दिया है वह सब इसके ही विचारोंका है। यह भाषण करनेसे पहले इसने अपने बड़ों से अनुमति ले ली थी। यह महिला मैट्रिक्युलेशनकी परीक्षा उत्तीर्ण हुई है और इसे उत्तम शिक्षण मिला है, ऐसा कहा जा सकता है। इसका भाषण श्री गांधीने पढ़कर सुनाया था। वह निम्न प्रकार है:

अब लड़ाई चोटी तक पहुँच गई है। इस कारण आप लोगोंके उन दुःखोंके प्रति जिन्हें मैं शुरू से ही देखती आई हूँ तथा उन दूसरे दुःखोंके प्रति जो आपको अभी भुगतने हैं, मैं अपनी सहानुभूति प्रकट करती हूँ। मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ कि आगे आनेवाले दुःखोंसे आप भयभीत न हों, हार न मानें, बल्कि देश और धर्मके लिए जो शौर्य-भरा निश्चय आप लोगोंने किया है उसको पूरा करते हुए प्राण चले जायें तो भी लड़ते रहें। इंग्लैंडमें मेरी बहनें जो लड़ाई लड़ रही हैं उसकी याद मैं आप लोगोंको दिलाती हूँ। अपने अधिकारोंके लिए अपना सब-कुछ गँवानेके वास्ते वे महिलाएँ तैयार हुई हैं। उनमें से कई तो जेल जाकर पावन हुई हैं। अन्य तैयार हैं। यदि कोमलांगी नारियाँ

  1. कुमारी सोंजा स्लेशिन एक यहूदी लड़की थी, उसका "चरित्र सोने जैसा खरा और बहादुरी योद्धाको भी शरमानेवाली" थी। सोलह वर्षकी आयुमें उसने गांधीजीके साथ एक स्वरा-लेखक के रूपमें काम किया और इंडियन ओपिनियनका बहुत-सा काम सम्हाला। उसे भारतीय संघर्षमें बहुत अधिक दिलचस्पी थी। "सैकड़ों भारतीय वीर उससे निर्देशनकी अपेक्षा करते थे। सत्याग्रह के दिनोंमें जब सभी जेलमें थे, उसने अकेले ही आन्दोलनका नेतृत्व किया। उस समय उसे हजारों रुपयोंकी व्यवस्था, भारी मात्रामें पत्र-व्यवहार और इंडियन ओपिनियन की देखभाल करनी पड़ती थी। परन्तु वह कभी परेशान नहीं हुई।" दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २३ और आत्मकथा, भाग ४, अध्याय १२, भी देखिए।