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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हैं जैसी कि यह ( अमरीकी संयुक्त राज्य ) हैं, वे सोचते हैं कि उन्हें तबतक प्रतीक्षा करनी चाहिए जबतक वे बहुसंख्यकोंको उन्हें बदलनेके लिए राजी न कर लें। वे सोचते हैं कि यदि वे विरोध करेंगे तो इलाज मर्जंसे भी बदतर होगा। परन्तु इसमें स्वयं सरकारका दोष है कि इलाज मर्जंसे भी बदतर हो। वही उसे बदतर बनाती है। सुधारोंके बारेमें पहलेसे कल्पना करने और उनकी व्यवस्था करनेकी अधिक क्षमता उसमें क्यों नहीं है? अपने बुद्धिमान अल्पसंख्यकोंके प्रति वह स्नेह क्यों नहीं रखती? चोट लगनेसे पहले ही वह क्यों चीखती और प्रतिरोध करती है। अपने नागरिकोंको वह प्रोत्साहन क्यों नहीं देती कि वे सावधान रहकर उसके दोष बताते रहें? और वह उनसे जैसी अपेक्षा करती है उससे ज्यादा अच्छा काम क्यों नहीं करती?

"सिद्धान्तसे उद्भूत कार्य, औचित्यके बोध और उसके कार्यान्वयसे वस्तुओं और सम्बन्धोंमें अन्तर आ जाता है। वह तत्वतः क्रान्तिकारी होता है और पूर्णतया किसी ऐसी चीजसे मेल नहीं खाता, जो थी। वह न केवल राज्यों और गिरजोंको विभाजित करता है, बल्कि परिवारोंको भी विभाजित कर देता है। हाँ, वह व्यक्तिको भी, उसमें जो देवी तत्व है उससे पैशाचिक तत्वको अलग करके, विभाजित कर देता है।"

अधिकार और शक्तिके हाथोंमें पुंजीभूत ज्ञानके असम्बद्ध पहलूकी चर्चा करते हुए उन्होंने कहा हैं---"आखिरकार, जब शक्ति एक बार जनताके हाथमें आ जाती है तब बहुमतको और एक लम्बे अर्से तक क्यों शासन करने दिया जाता है? इसका व्यावहारिक कारण यह नहीं है कि वे अधिकांशतः सही रास्तेपर हो सकते हैं, या कि यह बहुमतको सर्वाधिक उचित जान पड़ता है, बल्कि यह है कि वे शारीरिक बलमें सबसे प्रबल होते हैं परन्तु कोई सरकार, जिसमें बहुमतका शासन होता है, सभी मामलोंमें न्यायपर, जहाँतक आदमी उसे समझ सकते हैं, आधारित नहीं हो सकती।"

फिर: "मेरा खयाल है, यदि उनकी तरफ ईश्वर है तो यह काफी है। उन्हें किसी दूसरेकी प्रतीक्षाकी आवश्यकता नहीं है। और फिर, कोई आदमी जो अपने पड़ोसीकी अपेक्षा अधिक सही है, एकके बहुमतमें है ही।...किसी ऐसी सरकारके अधीन, जो किसीको अन्यायपूर्वक जेलमें डालती है न्यायनिष्ठ मनुष्यके लिए सही स्थान जेलखाना ही है।"

आधुनिक परिस्थितियोंने राज्य शासनके सम्पूर्ण ढाँचेको बदल दिया है। परन्तु दलीय सरकारके अधीन मतव्यवस्था प्रायः मानवोंके एक अनुदार समूहको पद और शक्ति प्रदान कर देती है। इस प्रकारकी परिस्थितियोंका मुकाबला करनेके लिए थोरो समस्त ईमानदार मनुष्योंको यों प्रोत्साहित करते हैं:

"अपना सम्पूर्ण मत डालिए केवल कागजकी एक पर्ची नहीं, बल्कि अपना सम्पूर्ण प्रभाव डालिए। अल्पमत तबतक शक्ति हीन रहता है जबतक वह बहुमतका समर्थन करता है; तब वह अल्पमत भी नहीं रहता। परन्तु जब यह अपनी सम्पूर्ण शक्तिसे मुकाबला करता है तब बेरोक हो जाता है।"

ईसाके आगमनसे चार शताब्दी पहले यूनानके सुकरात अपने युगके सबसे बुद्धिमान नीतिवादी माने जाते थे। उनकी अविचल सच्चाईने उनके बहुत-से शत्रु बना दिये थे। राज्यने, अथवा उससे भी अधिक उन लोगोंने, जो राज्यमें शक्तिके स्थानपर थे, उनपर एथेन्सके युवकोंको भ्रष्ट करने और राष्ट्रीय देवताओंके तिरस्कार करनेका इल्जाम लगाया। उनपर नियमित रूपसे मुकदमा चलाया गया। उनका मुख्य अपराध यह था कि वे देववाणी या आन्तरिक उपदेशपर, जिसे उस समयके लोग उतना स्पष्ट रूपसे नहीं समझते थे जितना कि वे समझते थे, ध्यान देते थे। वे घोषणा करते थे कि उनका अन्तदेव उनके बुरे आवरणके लिए उनकी भर्त्सना करता है। और प्रत्येक अच्छे शब्द और कार्यके लिए उनकी सराहना करता है। वे अपने समयसे आगे थे। और उनकी मौलिकता, सत्य और बुद्धिमानीके लिए उन्हें मृत्युका दण्ड दिया गया। जब उनके शिष्योंमें से एकने पुकार कर कहा, "ऐसे निर्दोष मनुष्यको दण्डित करना कैसा लज्जाजनक है; तब सुकरातने पूछा---यदि मैं दोषी होता तो क्या मेरे मित्र इसे कम लज्जाजनक समझते?" एक ऐसे मनुष्यका, जिसने पार्थिव संसारके बारेमें सब विचार छोड़कर निर्भयता के साथ यह शिक्षा दी कि "मनुष्य जातिका समुचित अध्ययन मनुष्य ही है", उपहास