पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/५३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

परिशिष्ट ७

ट्रान्सवाल लीडर' के नाम रेवरेण्ड जे० जे० डोकका पत्र

[४ जुलाई, १९०८]

[ सम्पादक
'ट्रान्सवाल लीडर'
महोदय, ]

हम सबको इस बातका हार्दिक दुःख है कि एशियाइयोंसे सम्बन्धित परिस्थिति एक बार फिर विषम हो गई है। अभी जब पाँच महीने पहले सत्याग्रह समाप्त हुआ था तब हमने सच्चे मनसे आशा की थी कि इस झगड़े की पुनरावृत्ति फिरसे इस रूपमें कभी नहीं होगी। इसके कारण व्यापार अस्त-व्यस्त हो गया था और जेलें ऐसे व्यक्तियोंसे भर गई थीं जो जनरल स्मट्सके शब्दोंमें "गुनहगार नहीं" थे। सरकार परेशानीमें पड़ गई और हम सब भी अत्यन्त त्रस्त हो गये। इसकी पुनरावृत्ति सचमुच एक विपत्ति बन जायेगी। हमें अबतक आशा है कि कदाचित् यह विपति टल जायेगी। हम सबको अपनी "समूची शक्ति और सचाईके साथ" इस लक्ष्यको पानेका प्रयास करना चाहिए। किन्तु फिलहाल जान पड़ता है कि स्थिति बहुत विषम हो जायेगी। और जानकार लोगोंका कहना है कि सत्याग्रह फिर अवश्यम्भावी हो गया है।

मैं यह पत्र क्यों लिख रहा हूँ—इसकी सफाईमें मुझे यही कहना है कि इस प्रश्नसे सम्बन्धित एशियाई दृष्टि-कोणका मुझे कुछ ज्ञान है; और इस संकटापन्न स्थितिमें उस दृष्टिकोणको सामने रखना शायद कुछ उपयोगी हो।

उपनिवेश-सचिव आखिरकार उस आपत्तिजनक एशियाई कानून संशोधन अधिनियमको रद करनेपर राजी हो गये हैं। मेरी समझमें न्यायपूर्ण और आशाप्रद निबटारेके लिए यह अनिवार्य है। समझौते की बातचीतके दौरान परिस्थितिवश मुझे एक महत्त्वपूर्ण दायित्व मिल गया था; और अपनी व्यक्तिगत जानकारीके आधारपर मुझे इस बातका पूरा विश्वास है कि एशियाइयोंको इस बातमें कोई शक नहीं था कि अधिनियमका रद किया जाना समझौतेका अत्यावश्यक अंग है।

उपनिवेश सचिवके रिचमण्डमें दिये गये भाषणसे इस विश्वासको पनपनेमें सहायता मिली है। ६ फरवरी के समाचारपत्रों में प्रकाशित समाचार के अनुसार "उन्होंने उन लोगों (एशियाइयों) से यह कहा कि जबतक देशमें एक भी एशियाई ऐसा रहेगा, जिसने पंजीयन न कराया हो, तबतक कानून रद नहीं किया जायेगा।" उन्होंने दोहराया कि "तबतक कानूनको रद नहीं किया जायेगा जबतक देशमें मौजूद प्रत्येक भारतीय अपना पंजीयन नहीं करा लेता।" इस प्रकार कानून रद होनेकी सम्भावना दिखाकर सभी एशियाइयोंको अपना पंजीयन करानेके लिए प्रेरित किया गया था। यह सब कहनेका प्रयोजन इतना ही है कि जिस बात से इस समय इतनी दृढ़ताके साथ इनकार किया जा रहा है एशियाइयोंके पास उसपर विश्वास करनेका यथेष्ट आधार मौजूद था। उपनिवेश-सचिव अब अधिनियमको रद करनेके लिए सहमत तो हो गये हैं; दुर्भाग्य केवल इतना है कि उन्होंने यह रियायत देनेके लिए कुछ ऐसी शर्तें लगा दी हैं जिनको एशियाई स्वीकार नहीं कर सकते। इस विषय के सम्बन्धमें ये शर्तें पहली बार सामने आई हैं। लगता है, प्रचार कुछ इस तरहका किया जा रहा है कि एशियाइयोंने ही नई-नई माँगे पेश की हैं। इसमें सचाई नहीं है। सच तो यह है कि जनरल स्मट्स जिन शर्तोंपर जोर दे रहे हैं वे बिलकुल नई हैं। समझौतेके दौरान उनमें से किसीकी बात तक नहीं उठी थी। संक्षेपमें, वे इस प्रकार हैं:

(१) कि शिक्षित व्यक्तियोंको निवासके लिए यहाँ प्रवेशकी अनुमति देनेके मामलेमें 'प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम' को एशियाइयोंपर लागू नहीं माना जायेगा। जनरल स्मट्सने सदा इस अधिनियमकी यही व्याख्या

८-३२