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परिशिष्ट

'प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम' के प्रति आक्रोश नहीं है। वे केवल इतना ही चाहते हैं कि उसकी व्याख्या किसी अफसरपर न छोड़ी जाये ---फिर वह अफसर कितना ही बड़ा क्यों न हो; वे चाहते हैं कि कोई मान्यता प्राप्त न्यायालय ही इसकी व्याख्या करे; उन्हें उसका निर्णय स्वीकार होगा। उन्हें एशियाइयोंके श्री चैमने द्वारा निषिद्ध करार दिये जाने और देशसे बाहर कर दिये जानेपर भी आक्रोश नहीं है; लेकिन उनकी यह माँग अवश्य है कि किसी अफसरको अन्तिम निर्णयका अधिकार न दिया जाये। वे ऐसे मामलोंमें संविहित रूपसे बनाये गये न्यायाधिकरणके सन्तुलित निर्णयको प्राप्त करनेके लिए अपीलफा अधिकार चाहते हैं। समझौतेमें जिन शर्तोंकी कोई चर्चातक नहीं उठी, हमारा विरोध उन नई माँगों और उनमें निहित निरंकुशताकी प्रबल भावनासे है। निश्चय ही ये बातें मजलूमोंके लिए तो सर्वाधिक महत्त्वकी हैं किन्तु हमारी सरकारके लिए इनका इतना महत्त्व कहाँ! प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके अंतर्गत कठोर परीक्षाके कारण एशियाइयोंका बड़ी संख्यामें प्रवेश सम्भव नहीं है। और न्यायपूर्ण आचरणले प्रतिष्ठापर कोई आँच नहीं आती। एशियाइयोंकी समझमें इन नई शर्तोंको स्वीकार करनेसे उन्हें इतनी अधिक हानि होगी कि वे समझौतेकी पहलेकी स्थितिपर वापस जानेको तैयार हैं; अर्थात् कुछ ही दिनों में फिर सत्याग्रह छिड़ जायेगा। क्या अब भी इस विपत्तिको रोकनेकी दृष्टिसे समझौता करनेका कोई प्रयास नहीं किया जा सकता? हम महसूस करते हैं कि इस बार जो भी समझौता हो वास्तविक हो। मेरा खयाल है कि पैबन्द लगानेसे कोई सन्तुष्ट नहीं होगा; और हम यह भी समझ रखें कि यदि न्याय और सद्भावकी भावनाका सभीके लिए समानरूपसे पालन न हुआ, तो अन्तिम समझौते जैसी कोई बात नहीं बनेगी।

[ आपका, आदि,
जे० जे० डोक ]

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ११-७-१९०८

परिशिष्ट ८

रिचमंडमें दिया गया जनरल स्मट्सका भाषण

[ फरवरी ५, १९०८ ]

स्मट्स द्वारा फरवरी, १९०८ के पहले सप्ताहमें किसी समय, रिचमंड में दिये गये भाषणका संक्षेप यह है:

"... सन् १९०६ में जब सरकारने [ प्रवासियोंके बढ़ते आनेवाले प्रवाहको ] रोकना ठीक माना...संविधान परिषद्में एक विधेयक पेश किया गया और वह पास हो गया। उसका उद्देश्य ऐसे हरएक एशियाईको, जिसे यहाँ रहनेका कानूनी हक हो, इस प्रकार पंजीयन करना था कि उसमें भूलकी कोई गुंजाइश बाकी न रहे...[ और ] जो भारतीय यहाँ युद्धके पहले रह रहे थे उन्हें सुनिश्चित हैसियत प्रदान करना था।...बड़ी सरकारने उक्त कानूनको अपनी सम्मति देनेसे इनकार कर दिया।

ट्रान्सवालकी पहली संसदको बैठक पिछले मार्चमें हुई और उसने [ इसी किस्मके एक दूसरे विधेयकको ] सर्वानुमतिसे अपनी मंजूरी दी और उसे...सम्मति मिल गई।...

उक्त कानूनमें कहा गया था कि सरकार एक अवधि घोषित कर दे जिसके अन्दर एशियाई [ स्वेच्छया ] अपना पंजीयन करा लें...देशमें रहनेवाले १०,००० भारतीयोंमें से केवल ५०० ने पंजीयन कराया।...

तीन उपाय थे...उन्हें सीमाके पार निर्वासित कर दिया जाये;...सबको जेल भेज दिया जाये;...या [ सारा सवाल ] संसदमें पुनः पेश किया जाये।...निर्वासित करना आसान नहीं था। [ नेटाल, ऑरेंज रिवर कालोनी और रोडेशियाने "कुलियों" को प्रवेश देनेसे इनकार कर दिया था, इसलिए ]