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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

ऐसा करें तो क्या मर्द पीछे हटेंगे? आप लोगोंने जो रास्ता लिया है उसपर दृढ़ रहें। दिल मजबूत करके खुदाकी ओर निगाह रखकर विजय प्राप्त करें अथवा संघर्षमें मर मिटें। यदि आप इस निश्चयपर अटल रहे, आपने खुदाके नामपर ली गई कसम निबाही और आप लोगोंका रहन-सहन और बर्ताव जिस प्रकार सरल है उसी प्रकार आपके काम वीरतापूर्ण रहे, तो आप लोग अवश्य जीतेंगे।

एक बालिका इस प्रकार अपनी अन्तरात्मासे हमारी हिम्मत बढ़ा रही है। फिर भी यदि हम लोग कायर बनकर, जेलसे डरकर अपना नाम डुबा दें तो हमें बहुत पछताना होगा---यह सबको याद रखना चाहिए।

देश-निकाला होना सम्भव नहीं

प्रवासी कानून तो एक दिनका तमाशा हो गया है। किसीको देश-निकाला नहीं दिया जा सकता, यह अब सभी स्वीकार करने लगे हैं। श्री लेनर्डका[१] ऐसा मत है, यही नहीं; बल्कि 'डेली मेल' में एक विशेष लेखकने बहुत सारी दलीलें देकर बताया है कि भारतीयोंको देश निकाला देना सम्भव नहीं है। इसलिए प्रवासी कानूनपर हस्ताक्षरका अर्थ यही हुआ कि बड़ी सरकार हम लोगोंकी सहायता करनेमें झिझकती है। और, क्यों न झिझके? हम लोग पंजीयको इस प्रकारके गुप्त पत्र जो लिखते हैं कि, हम पंजीयन करवानेको तैयार हैं लेकिन शर्मके मारे नहीं करवा पाते; हमारे नाम लिख रखियेगा। हम ही पंजीयकको रामसुन्दरके बारेमें पत्र लिखते हैं कि वह व्यक्ति ऐसा है, वैसा है। वह चाहे जैसा हो किन्तु इस प्रकार गुप्त पत्र लिखनेसे हमारा मान घटता है। हम कायर ठहरते हैं। हम लोग जो बहादुरी दिखा रहे हैं उसे इन गुप्त लेखोंसे हानि पहुँचती है। गुप्त लेख गुप्त रूपसे लॉर्ड एलगिनके पास पहुँचेंगे। उन लेखोंको वे सही मान लेंगे। क्यों न मान लें? ऐसे लेखोंमें बहुत-थोड़ा सत्य हो तो हो, किन्तु उसके साथ अधिकांश झूठ भी पहुँच जाता है। इसलिए हमारा सिक्का खोटा ही माना जायेगा। हम लोग जब खरे सिक्के साबित होंगे, अनेक वर्षोंकी गुलामीके कारण हमारी जो हड्डियाँ ढीली पड़ गई हैं वे जब सख्त होंगी, जब हम लुक-छिपकर काली करतूत करने से बाज आयेंगे तब बड़ी सरकारको बड़ी सरकार भी हमारी बातकी सुनवाई करेगी। जबतक हममें सच्ची वीरता नहीं आई तबतक हम बड़ी सरकारको किस प्रकार दोषी कह सकते हैं।

कच्चे घड़े

जब प्रवासी कानूनपर हस्ताक्षर हुए तभी पीटर्सवर्ग से तार दिये गये--"हम आ रहे हैं"; बहादुर लोग बड़ी तेजीसे प्रिटोरिया पहुँचे। फिर खुदाबन्द चैमने साहबकी झुक-झुककर ताजीम की। उन्होंने कहा कि आप लोगोंको में गुलामीका पट्टा नहीं दे सकता। मजिस्ट्रेटका हुक्म ले आइये। फिर वे प्रिटोरियाके मजिस्ट्रेटके पास गये। उन्होंने कहा कि मुझे यह अधिकार नहीं है। अब (रविवार से पहले) ये साहबान पीटर्सबर्ग से तशरीफ वापस ले आये हैं। वहाँके मजिस्ट्रेट जब हुक्म देंगे तब दुबारा प्रिटोरिया पधारेंगे। इन वीर पुरुषोंके नाम मैं जानता हूँ। ऊपरकी बात सही है या गुलामी मिल चुकी है, उसके बारेमें मैं निश्चित रूपसे नहीं कह सकता। जैसी कहानी मेरे पास आई है वैसी में पेश कर रहा हूँ।

  1. जोहानिसबर्गके एक प्रसिद्ध बैरिस्टर।