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तारीखवार जीवन-वृतान्त

मुकदमा हुआ और २ महीनेकी सजा मिली।

'रैंड डेली मेल' को अन्तिम भेंट देते हुए घोषित किया कि उन्होंने यह संघर्ष अत्यन्त विनम्र भावसे भगवत्-भक्तिपूर्वक शुरू किया है।

जनवरी २१: श्री कार्टराइट जेलमें गांधीजीसे मिले, और दोनोंमें यह बात तय हुई कि यदि ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम रद किया जाये तो बदलेमें भारतीय स्वेच्छया पंजीयन करा लेंगे। गांधीजीने एशियाई कैदियोंको दी जानेवाली खुराकके सम्बन्धमें जेल-निदेशकको एक प्रार्थनापत्र भेजा।

जनवरी २७: भारतके अहमदनगर और अन्य शहरोंमें सभाएँ हुईं, जिनमें ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमके विरुद्ध रोष प्रकट करते हुए साम्राज्य सरकारका ध्यान आकर्षित किया गया।

जनवरी २८: ट्रान्सवाल एशियाई कानूनपर 'नीली पुस्तक'[१] लन्दनमें प्रकाशित हुई। लन्दनके न्यू रिफॉर्म क्लबकी एक सभामें सर विलियम वेडरबर्नने कहा कि साम्राज्य सरकार ट्रान्सवालकी प्रतिरक्षापर ३० लाख पौंड प्रतिवर्ष खर्च करती है, इसलिए उसे अधिकार है कि वह उपनिवेश में रहनेवाले भारतीयोंके साथ साम्राज्यकी परम्पराओंके अनुसार व्यवहार किये जानेकी माँग करे।

सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरीने चेतावनी दी कि यह "साम्राज्य-सरकारके लिए खतरा है", और मुहम्मद अली जिन्नाने[२] कहा कि ट्रान्सवालके भारतीयोंके साथ जो अपमानजनक व्यवहार किया जा रहा है, उसके विरोधमें सारे भारतीय एक हैं। कार्टराइटने २१ तारीखकी बातचीतको आगे बढ़ाते हुए समझौतेसे सम्बन्धित एक पत्र जेलमें ले जाकर गांधीजीको दिया। यह मसविदा स्वयं उन्होंने या जनरल स्मट्सने तैयार किया था। गांधीजीने उसमें कुछ सुधार किये और साढ़े बारह बजे रातको क्विन और नायडूके साथ उसपर हस्ताक्षर किये।

अढ़ाई बजे दिनको कार्टराइट समझौतेसे सम्बन्धित वह पत्र लेकर जनरल स्मट्स से मिलने प्रिटोरियाके लिए रवाना हो गये।

पाँच बजे शाम कार्टराइटने फोनसे खबर दी कि जनरल स्मट्सने पत्रकी शर्तोंको स्वीकार कर लिया है।

जनवरी २९: भारतके बम्बई शहरमें महाविभव[३] आगाखाँकी अध्यक्षतामें ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमके विरोधमें सभा हुई और उसमें साम्राज्य सरकारसे हस्तक्षेप करनेकी अपील की गई। यदि वह हस्तक्षेप न करे तो, कहा गया कि भारतको दक्षिण आफ्रिकियोंके साथ जवाबी कार्रवाईकी नीतिका अवलम्बन करनेकी छूट दी जाये।

जनवरी ३०: कार्यकारी सहायक उपनिवेश सचिवने समझौतेके पत्रकी स्वीकृति एक पत्र लिखकर भेजी।

 
  1. ब्ल्यू बुक या सरकारी रिपोर्ट।
  2. मुहम्मद अली जिन्ना अंजुमन-इ-इस्लाम बम्बईकी ओरसे इंग्लैंड जाकर ट्रान्सवालके भारतीयोंकी स्थिति स्पष्ट करने और उपनिवेशोंमें एशियाइयोंकी समस्या सुलझानेकी दिशामें जनमत तैयार करनेके लिए नियुक्त किये गये थे। इंडियन ओपिनियन, ११-८-१९०८।
  3. हिज़ हाइनेस।