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तारीखवार जीवन-वृत्तान्त

फरवरी ४: लॉर्ड ऐम्टहिलने लॉर्ड सभामें ध्यानाकर्षण प्रस्ताव[१] रखा। लॉर्ड कर्जन भी बोले।[२]

फरवरी ५: लन्दनके 'टाइम्स' ने उपनिवेश कार्यालयको दोष दिया कि उसने ट्रान्सवालकी सरकारपर साम्राज्यके हितोंकी रक्षाके लिए जोर नहीं डाला और "सूझ-बूझकी कमी" दिखाई। यदि वैसा किया जाता, तो समझौता पहले भी हो सकता था।

पत्रने प्रजातियोंसे[३] सम्बन्धित प्रश्नोंके बारेमें स्वशासित उपनिवेशों से अपील की कि वे एक सर्वसम्मत "साम्राज्यीय रुख"[४] अपनायें।

फरवरी ५-६ (?): स्मट्सने सार्वजनिक भाषणोंमें और समाचारपत्रोंको भेंट देते हुए वचन दिया कि ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमके उल्लंघन तथा अनुमतिपत्रोंके बिना व्यापारके कारण गिरफ्तारियाँ नहीं की जायेंगी। इस बीचमें कानून भी रद नहीं होगा। फिर भी स्वेच्छासे कराये गये पंजीयनोंको वैध बनानेके लिए संसदके आगामी सत्रमें कानून बना दिया जायेगा। उन्होंने यह भी घोषित किया कि समझौतेका उद्देश्य उपनिवेशमें एशियाई आबादीको कम करना है।

फरवरी ८: 'इंडियन ओपिनियन' में स्वेच्छया पंजीयनकी[५] पद्धतिको स्पष्ट करते हुए गांधीजीने शिक्षित भारतीयोंको सलाह दी कि वे स्वेच्छासे पंजीयन करानेके लिए दिये गये अपने प्रार्थनापत्रोंपर बजाय अँगुलियोंकी छाप देनेके हस्ताक्षर करनेके विकल्पको न अपनायें।

फरवरी १०: स्वेच्छया पंजीयन प्रारम्भ हुआ।

मीर आलमखाँ और अन्य व्यक्तियोंने गांधीजीपर हमला किया; श्री डोकके घरमें आहत अवस्थामें पड़े हुए उन्होंने अपील की कि हमलावरोंको क्षमा कर दिया जाये।

एशियाइयोंसे अपील की कि वे स्वेच्छया अंगुलियोंके निशान दें।

फरवरी ११: ऑक्सफोर्डमें डॉक्टर जी० यू० पोपकी मृत्यु।

फरवरी १५: 'इंडियन ओपिनियन' में "समझौतेके बारेमें प्रश्नोत्तरी" शीर्षक गांधीजीका लेख प्रकाशित हुआ।[६]

फरवरी २२: गांधीजीने 'इंडियन ओपिनियन' के फरवरी २२ और २९ के अंकोंमें उन परिस्थितियोंको समझाते हुए जिनमें समझौता किया गया था, भारतीय समाजके कर्तव्योंको स्पष्ट किया; ट्रान्सवालके हिन्दू और मुसलमानोंकी एकतापर जोर दिया।

स्मट्सको पत्र लिखा और उसके साथ ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमके संशोधनके लिए विधेयकका मसविदा भेजा। यह सुझाया कि शान्ति-रक्षा अध्यादेश और ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम रद कर दिये जायें।

 
  1. कॉल अटेशन मोशन।
  2. देखिए परिशिष्ट १२।
  3. रेसेज़।
  4. ऐन ऐग्रीड इम्पीरियल ऐटिट्यूड।
  5. वालंटरी रजिस्ट्रेशन।
  6. अपनी पुस्तक दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहासमें गांधीजीने लिखा है कि यह संवाद उन्होंने फीनिक्समें लिखा था-- अर्थात मार्च ६ के बाद।
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