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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फरवरी २९: जोहानिसबर्गमें स्वेच्छया पंजीयनके लिए दिये गये प्रार्थनापत्रोंकी संख्या ३,४०० तक पहुँच गई।

मार्च ५: गांधीजी पठानों और अन्य लोगोंमें समझौतेके बारेमें फैले हुए भ्रमको दूर करनेके लिए डरबन गये।

नेटाल भारतीय कांग्रेसके तत्त्वावधानमें डर्बनमें सार्वजनिक सभा हुई। वहाँ उन्होंने भाषण दिया।[१] पठानोंने फिरसे उनपर हमला करनेकी कोशिश की।

मार्च ६: डर्बनमें पठानोंसे मिले। पठानोंने यही कहा कि गांधीजीने कौमको धोखा दिया है। गांधीजीने मेल-मिलापके इस प्रयत्नको असफल बताया।

स्वास्थ्य लाभके बाद 'अपने कुटुम्ब' से मिलनेके लिए कुछ 'आनन्दी व्यक्तियों' के साथ फीनिक्सके लिए रवाना हुए।

मार्च १०: लन्दनमें सर लेपेल ग्रिफिनकी मृत्यु।

मार्च १४: ब्रिटिश भारतीय संघने उन गोरोंको भोज और उपहार दिये जिन्होंने सत्याग्रह-संघर्षमें मदद पहुँचाई थी। कहा जाता है कि दक्षिण आफ्रिकामें इस प्रकारका यह पहला ही आयोजन था।

मार्च १७: कलकतामें लॉर्ड मिंटोने घोषणा की कि उत्तर प्रदेशमें फसलोंके खराब होनेसे कोई पाँच करोड़ आदमियोंपर संकट आ गया है। उत्तर प्रदेशमें अकालकी स्थिति सितम्बर १९०७ में ही उत्पन्न हो गई थी।

मार्च १८: जोहानिसबर्गमें स्वेच्छया पंजीयन करानेवालोंकी संख्या ५,०९० तक पहुँच गई।

मार्च २१: 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के संचालक और सम्पादक टी० जे० बेनेटने लॉर्ड ऐम्टहिलको लिखा कि बम्बईकी वह सार्वजनिक सभा, जो आगाखाँकी अध्यक्षतामें हुई थी, प्रातिनिधिक थी। उसमें यूरोपीय व्यापारियों और सरकारी अफसरोंको मिलाकर सभी जातियोंके लोगोंने क्षोभ व्यक्त किया था।

मार्च २४: कॅनडामें सरकारने 'एस० एस० मॉन्टईगल' से पहुँचनेवाले १४६ भारतीयोंको देश-निकालेका आदेश दिया था; वहाँके सर्वोच्च न्यायालयने उसे रद कर दिया और वे भारतीय छोड़ दिये गये।

मार्च २६: क्लार्क्सडॉर्पमें बोलते हुए लॉर्ड सेल्बोर्नने कहा कि "पूर्व पूर्व है और पश्चिम पश्चिम है" और चूँकि "गोरोंकी सभ्यता खर्चीली है", इसलिए वे भारतीय व्यापारियोंसे स्पर्धा नहीं कर सकते। उन्होंने सुझाव दिया कि साम्राज्यके जो प्रदेश अभीतक आबाद नहीं हुए हैं वे एशियाइयोंके बसनेके लिए सुरक्षित कर दिये जायें। "ब्रिटिश और बोअर लोग अंग्रेजी साम्राज्यमें बराबरीके साझेदार हैं।"

मार्च ३० के पहले: उपनिवेश-सचिव, डॉ० सी० ओ' ग्रेडी गबिन्सने घोषित किया कि नेटाल सरकारका इरादा गिरमिटिया मजदूरोंका आगमन, और १० वर्षके बाद 'अरब' व्यापारियों को परवाना देना, बन्द करनेके लिए कानून बनानेका है।

 
  1. अप्राप्य है।