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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मई २७: ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिकी बैठकमें परिस्थिति समझाई और समितिने फिर सत्याग्रह शुरू करनेकी बात स्वीकार की।

मई २९: प्रार्थनापत्रोंके फार्म वापस करनेके लिए चैमनेको तार दिया।

मई ३० के पहले: ब्रिटिश भारतीय संघकी विभिन्न नगर-समितियोंको गश्ती-पत्र भेजा। उसके द्वारा स्वेच्छया पंजीयनके प्रार्थनापत्र वापस लेनेको कहते हुए फिर सत्याग्रह शुरू करनेकी सूचना दी। गांधीजीने फिरसे सत्याग्रहियोंकी निःशुल्क पैरवी करनेकी बात दोहराई।

मई ३०: 'इंडियन ओपिनियन' में एक पत्र लिखकर घोषणा की कि सत्याग्रह फिरसे शुरू किया जायेगा।

गांधीजीके २९ तारीखके तारका चैमनेने तारसे जवाब दिया। उन्होंने कहा कि गांधीजीने ट्रान्सवाल प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके संशोधनार्थ विधेयकका जो मसविदा भेजा था वह कहीं खो गया है; उसकी एक प्रति भेजने का अनुरोध भी किया; दूसरी प्रति भेज दी गई।

गांधीजीने जनरल स्मट्ससे फरवरी १ और २२ के बीच किये गये पत्र-व्यवहारको प्रकाशित करनेकी अनुमति माँगते हुए लेनको पत्र लिखा।

जून १ के पहले: दक्षिण रोडेशियामें एशियाइयोंके आव्रजनपर नियन्त्रण लगानेवाले अध्यादेशका मसविदा 'गज़ट' में प्रकाशित हुआ।

जून १: गांधीजीको फोनपर सूचना दी गई कि जनरल स्मट्सने भारतीय प्रश्नपर विचार करनेके लिए मन्त्रिमण्डलकी बैठक बुलाई है; वे अपना जवाब जून २ को भेजेंगे।

जून २ के पहले: गांधीजी विचेस्टर हाउसमें श्री चैमनेसे मिले।

जून २: ट्रान्सवालके गोरोंमें भारतीय प्रश्नसे सहानुभूति रखनेवाले प्रमुख गोरे इकट्ठे हुए और उन्होंने फिर उनकी माँगका समर्थन किया।

साम्राज्यीय संसदमें यह प्रश्न किया गया कि क्या समझौतेके भंग और सत्याग्रहके पुनः प्रारम्भ होने की सम्भावनाको देखते हुए सम्राट्की सरकार हस्तक्षेपका विचार नहीं कर रही है।

जून ४: वैधीकरण विधेयकके एक नये मसविदेपर विचार करनेके लिए गांधीजी जनरल स्मट्ससे ६ जूनको मिलनेके लिए निमन्त्रित किये गये।

लेनने एक अन्य पत्रके द्वारा जनरल स्मट्ससे हुए पत्र-व्यवहारके प्रकाशनकी अनुमति देनेसे इनकार किया।

जून ६: गांधीजी जनरल स्मट्ससे मिले। जो लोग पंजीयन करा चुके थे उनके स्वेच्छया कराये गये पंजीयनको वैध बनानेके तरीके, भविष्यमें आनेवाले एशियाई प्रवासियोंके स्वेच्छया पंजीयन करानेके अधिकार और गांधीजी द्वारा प्रस्तुत ट्रान्सवाल प्रवासी प्रतिबन्धक संशोधन अधिनियमके मसविदेपर विशेष रूपसे विचार हुआ। स्मट्सने स्वीकार किया कि ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम बिलकुल खराब है और उसकी कोई उपयोगिता नहीं है। प्रस्तावित कानूनके अन्तर्गत किस वर्गके एशियाइयोंका अधिवास-अधिकार मान्य किया जाये, इस प्रश्नपर मतभेद पैदा हो गया। गांधीजीने