पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/५६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५२०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जब इन शर्तोंको स्वीकार नहीं किया तब जनरल स्मट्सने ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमको बनाये रखने और स्वेच्छया कराये गये पंजीयनको वैध बनानेका अपना निर्णय घोषित किया।

समाचारपत्रोंको दी गई मुलाकातों तथा पत्रोंमें गांधीजीने घोषणा की कि यह समझौतेका उल्लंघन है और वे सर्वोच्च न्यायालयके सामने स्वेच्छया पंजीयन सम्बन्धी प्रार्थना-पत्रोंको वापस करानेके लिए जायेंगे।

ब्रिटिश भारतीय संघकी समितिने सर्वोच्च न्यायालयमें परीक्षात्मक मुकदमा दायर करनेका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

एक वक्तव्यमें समझौता वार्ता भंग होनेके कारणोंपर प्रकाश डालते हुए श्री स्मट्सने कहा कि जनवरी २८ के समझौता-पत्रमें ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम रद करनेका कोई उल्लेख नहीं था। उन्होंने इस शर्त पर इस अधिनियमको रद करना स्वीकार किया कि भारतीय संशोधन विधेयकमें तीन वर्गके प्रवासियोंको शामिल करनेका आग्रह छोड़ दें। चूँकि गांधीजी इसके लिए राजी नहीं हुए, अतः स्वेच्छया पंजीयनको एक पृथक कानूनके जरिये वैध करनेका निश्चय व्यक्त किया।

जून २३ के पहले: अस्वातने चैमनेको स्वेच्छया पंजीयन करानेके हेतु दिये गये अपने प्रार्थना- पत्रको वापस करनेके लिए लिखा।

जून २३: प्रार्थनापत्र वापस करनेसे सम्बन्धित उनकी याचिका सर्वोच्च न्यायालयमें दायर की गई। गांधीजी और ईसप मियाँने हलफनामा दाखिल किया कि स्मट्सने अधिनियम रद करनेका वचन दिया था।

जून २४: जोहानिसबर्गमें सार्वजनिक सभा। समितिका प्रार्थनापत्रोंको वापस लेने और ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियमको न माननेका सितम्बर ११, १९०६ को किया गया निश्चय[१] दोहराया गया।

सोराबजी शापुरजी शिक्षित भारतीयोंके अधिकारको जाँचनेके विचारसे ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हुए।

भारतमें 'केसरी' में लिखे गये गये लेखोंको राजद्रोहात्मक बताकर लोकमान्य तिलक गिरफ्तार किये गये।

जून २५: चैमनेने जवाबी हलफनामा दाखिल किया।[२]

जून २६: स्मट्सने हलफनामा दाखिल किया कि उन्होंने अधिनियम रद करनेका वचन दिया ही नहीं था।

चैमनेने भी इसी आशयका एक दूसरा हलफनामा पेश किया।

जून २९: गांधीजी और अस्वातने भी जवाबी हलफनामा पेश करते हुए दुबारा कहा कि स्मट्सने वचन दिया था और उसे पहले घोषित भी किया था।

 
  1. देखिए परिशिष्ट ५।
  2. देखिए परिशिष्ट ६।