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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

व्यापारिक परवाने

व्यापारी और फेरीवाले जेलका खतरा उठाकर बिना परवानोंके व्यापार करनेवाले हैं; इसलिए श्री ईसप मियाँने राजस्व-आदाता (रिसीवर) के पास पत्र[१] भेजा है कि भारतीय कौम परवाने लिए बिना व्यापार करेगी, लेकिन पंजीयन नहीं करायेगी। और अपना व्यापार करनेमें जो संकट आयेगा उसे लोग सहन करेंगे। अगर सरकारका इरादा परवाना-शुल्क लेनेका हो तो भारतीय कौम शुल्क देनेको तैयार है।

आदाताने इसका उत्तर भेजा है कि एशियाई कानूनके अन्तर्गत बिना पंजीयन किसी भारतीयको परवाना नहीं दिया जा सकता और जो बिना परवानेके व्यापार करेंगे उन भारतीयोंको राजस्व कानूनके अन्तर्गत सजा दी जायेगी। 'सजा दी जायेगी' यह वाक्यांश अब किसी भारतीयको डरा नहीं सकता। सजाका खतरा उठाकर सब लोग व्यापार और फेरी करने जा रहे हैं। संघने भिन्न-भिन्न स्थानोंको कुल मिलाकर बहत्तर पत्र भेजे हैं। उनमें बताया है कि भारतीय लोग बिना परवानेके व्यापार करें। पैसे जमा किये हों या नहीं, इसकी चिन्ता न करें; क्योंकि जमा करनेसे बचाव नहीं हो सकता। बचाव केवल भारतीयोंकी हिम्मतपर निर्भर है। व्यापार चालू रखा जाये और बिना परवाना व्यापार करनेपर मुकदमा हो तब जुर्माना न देकर जेल भुगतें। उनके पीछे नौकर दूकान चला सकते हैं। नौकरोंपर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। सरकार दूकान बन्द नहीं कर सकती।

हिन्दू-मुसलमान

मैं देख रहा हूँ कि रामसुन्दरके सम्बन्धमें[२] किसीने कुछ अंशोंमें हिन्दू-मुसलमान प्रश्न उठाया है। और फिर नेटालसे तार आये हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि किसीने 'मर्क्युरी' में इस प्रश्नपर अधिक जोर दिया है। इसका खुलासा श्री दाउद मुहम्मद[३] और श्री पीरन मुहम्मदने दिया है, जो सन्तोषप्रद कहा जा सकता है। फिर भी जिसने 'मर्क्युरी' में खबर दी उस व्यक्तिको में कौमका दुश्मन समझता हूँ। जिस समय भारतीय कौमने बड़ा भारी काम अपने ऊपर उठा रखा है उस समय हिन्दुओं और मुसलमानोंके बीचमें कुछ भी विरोध है, ऐसा यदि कोई कहता है तो वह झूठ है, इतना ही नहीं बल्कि वह स्वार्थपरता गिनी जायेगी। मेरी सिफारिश है कि ऐसे जातिद्रोही और देशद्रोही मनुष्योंको विषके बराबर समझकर हम उनसे बचे रहें। यह स्पष्ट है कि इस प्रकारके भेद रखनेसे किसी भी कौमका हित नहीं हो सकता।

संडे टाइम्स का व्यंग्य-चित्र

'संडे टाइम्स'का सम्पादक चाहे भारतीयोंके विरुद्ध लिखता रहे, पर उसका चित्रकार तो भारतीयोंकी अच्छी सेवा कर रहा है। उसने [ एक व्यंग्य-चित्रमें ][४] यह बताया है कि भारतीय

  1. देखिए "पत्र: राजस्व आदाताको", पृष्ठ ६-७ और राजस्व-आदाताके उत्तर के लिए देखिए पादटिप्पणी ३, पृष्ठ ६।
  2. देखिए "रामसुन्दर", पृष्ठ २२।
  3. नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष और ट्रान्सवाल्के पुराने अधिवासी। उन्होंने जुलाई १९०८ में उपनिवेशमें प्रवेश किया था और सीमापर १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत अँगूठेका निशान लगानेसे इनकार कर दिया था। इस प्रकार उन्होंने ट्रान्सवालके पुराने भारतीय अधिवासियों के प्रवेशाधिकार की स्थापनाके लिए अपनेको गिरफ्तार कराया। इस अधिकारके बारेमें बादको स्मट्सने शंका उठाई थी।
  4. देखिए चित्र, पृष्ठ ३२ के सामने।