पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१२. भेंट: 'स्टार' को

[जोहानिसबर्ग
जनवरी १०, १९०८]

श्री गांधीने इस बातका आग्रह किया कि कानूनसे अनिवार्यताका तत्त्व निकाल दिया जाये और फलतः परवाने लेने तथा पंजीयन करवानेके बारेमें जारी की गई हिदायतें भी वापिस ले ली जायें। इसके बदलेमें उन्होंने जिम्मेदारी ली कि एक महीनेके अन्दर-अन्दर इस देशमें रहनेवाले हर भारतीयका पंजीयन दोनों पक्षों द्वारा स्वीकृत फार्मके अनुसार हो जायेगा। यह स्वीकृत फार्म उन भारतीयोंको दिया जायेगा जो उपनिवेशमें रहनेके अधिकारी हैं अथवा जो अन्य किसी प्रकारसे अधिवासी स्वीकृत कर लिये गये हैं।

यदि स्वेच्छया पंजीयन प्रामाणिकता के साथ करा लिया गया तो पंजीयन अधिनियम बेकार हो जायेगा। और भारतीय समाज संसदके अगले अधिवेशनमें उसके वापिस ले लिये जानेकी आशा करेगा। इसके विपरीत यदि नेताओंके वचनकी पूर्ति नहीं हुई तो श्री गांधीने कहा कि जो लोग पंजीयन नहीं करायेंगे उनपर वे कानूनका लागू किया जाना पसन्द करेंगे।

श्री गांधी तो इससे भी आगे जानेको तैयार थे। और स्पष्ट ही उनका मंशा भारतीय व्यापारियोंके प्रति फैली हुई दुर्भावनाको दूर करना था। उनको तीव्र इच्छा थी कि व्यापारिक परवाने जारी करनेके सम्बन्धमें सरकार और विभिन्न नगरपालिकाएँ अपने उपनियम भी बना लें, ताकि केवल वे ही भारतीय व्यापारके परवाने प्राप्त कर सकें जिनके पास दूकानके लिए उपयुक्त जगह हो और उपयुक्त रीतिसे हिसाब-किताब रख सकने के साधन हों।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९०८

१३. दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंको अन्तिम सन्देश

[जोहानिसबर्ग
जनवरी १०, १९०८]

ट्रान्सवालके भारतीयोंको

जो भारतीय कैदमें गये हैं, वे कैदमें रहेंगे। यह समझ लेना चाहिए कि इस अर्सेमें ट्रान्सवालके भारतीय जो-कुछ करेंगे उसीपर जीत निर्भर रहेगी। सरकारने कुछ लोगोंको कैद किया, यह बहुत अच्छा किया। पीछे रहनेवाले भारतीयोंकी अब पूरी तरह कसौटी होगी।

कमजोर मनुष्य डरेंगे। ब्लेकलेग---कलमुँहे---तरह-तरहकी बातें बनायेंगे। इस प्रकारकी एक भी बातसे डिगना नहीं चाहिए। अपने बहादुर भाइयोंसे मेरी विनती है कि वे शपथको न भूलकर हिम्मत रखें।