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दक्षिण आफ्रिका भारतीयोंको अन्तिम सन्देश

लड़ाई शुरू करते समय ही हमने सोच रखा था कि सब-कुछ खो देंगे लेकिन खूनी कानूनको मानकर स्वाभिमान नहीं गँवायेंगे। अंग्रेजोंमें स्वाभिमानके लिए---देशके लिए---सब कुछ गँवा देनेके सैकड़ों उदाहरण मिलेते हैं। इसी प्रकार हम भी करेंगे तभी मनुष्य बनेंगे--- मनुष्य रहेंगे। इसलिए मैं मान लेता हूँ कि सब लोग परवाना मिले या न मिले, माल मिले या न मिले, फिर भी दृढ़ संकल्प रहकर जेल या देश-निकाला भुगतनेके ही विचारपर डटे रहेंगे। यदि मनका रुख बदल दें तो जेल कोई चीज नहीं है।

कोई किसी दूसरेके सहारेपर न रहे; बल्कि सभी अपने बलपर रहें। यदि ऐसा किया जाये तो कुछ भारतीयोंके कानूनको मान लेनेपर भी शेष लोग उनकी नकल करनेकी इच्छा नहीं करेंगे।

आपकी अपनी, और देशकी सेवाएँ दोनों इसीमें सन्निहित हैं। अगर भूलसे चक्करमें पड़कर पंजीयन करा लेंगे तो किनारेपर आये हुए जहाजको डुबायेंगे।

इस खुदाई लड़ाईमें जिस तरह हिम्मतकी जरूरत है उसी तरह सत्यकी भी है। बहुत-से लोगोंको भुखमरी भुगतनी पड़ेगी। उनको सहायता पहुँचानी होगी। इसमें बहुत प्रामाणिकताकी आवश्यकता है। भिन्न-भिन्न गाँवोंसे सहायता आयेगी; उसका उपयोग अच्छे ढंग से करना होगा। याद रखना चाहिए कि बिना आवश्यकता के कोई सहायता न माँगे। और सहायता देनेवाले, जो पैसा अथवा अनाज उनके हाथमें आये, उसका उपयोग अत्यन्त प्रामाणिकतासे करें।

इस लड़ाईमें हमारे सभी सद्गुणोंकी आजमाइश होगी। दुर्गुण जाहिर होकर सामने आ जायेंगे। याद रखिए कि इतने तमाम लोगोंको कैदमें भेज देनेके बाद, अब डरके मारे कानूनको मानकर यह मौका खो नहीं देना है।

जिन्होंने पंजीयन कराया है उनसे और यदि कोई अब करा लें तो उनसे द्वेष न किया जाये। यदि आपका ऐसा विश्वास रहा कि उन्होंने अच्छा काम नहीं किया है तो आपके मनमें उनकी तरह करनेका विचार भी नहीं उठेगा। जो अन्ततक लड़ते रहनेका साहस बनाये रखेंगे वे किसी भी देशमें अपनी रोजी कमा सकेंगे।

दक्षिण आफ्रिका अन्य भारतीयोंसे

ट्रान्सवालके भारतीय तन, मन और धनका कष्ट उठा रहे हैं। आपको केवल पैसेका कष्ट सहन करना है; तो इसमें चूकें नहीं। धनकी बहुत आवश्यकता पड़ेगी। आप लोग बधाई आदि देते हैं यह अच्छा है, आवश्यक है। किन्तु इसके साथ-साथ आप पैसे देंगे तभी बधाई शोभा देगी। यह लड़ाई केवल ट्रान्सवालके भारतीयोंके लिए नहीं है, समस्त भारतीय कौमके लिए है। अर्थात् इसमें आपका भी स्वार्थ है। आप लोग जिस प्रकार पैसोंसे सहायता कर सकते हैं वैसे ही सभाओं और प्रस्तावोंसे भी कर सकते हैं।

सभी भारतीयोंसे

चाहे जो हो, सार्वजनिक मामलोंमें हिन्दू-मुसलमानका भेद हटाये बिना कभी जीत मिलनेवाली नहीं है। यह कुंजी सभीपर लागू होती है। हम हिन्दू-मुसलमान एक देशके हैं और एक माँके बेटे हैं, जब यह भावना मनमें प्रबल होगी तभी विजय मिलेगी।

मोहनदास करमचंद गांधी

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९०८