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भाषण: न्यूटाउन मस्जिदमें

एक महीने बाद

यह बात कुछ महत्त्व नहीं रखती कि जनरल स्मट्स आज क्या सोचते हैं, किन्तु एक महीने बाद जब आप लोगोंमें से हरएक यह दिखा देगा कि आप मनुष्य हैं, तब जो-कुछ वे सोचेंगे सो महत्त्वपूर्ण होगा। मुझे इस बातमें जरा भी शक नहीं है कि उद्देश्यकी सचाई और समाजमें व्याप्त वास्तविक भावनाको पहचानने योग्य मानवता जनरल स्मट्समें है और अगर आप यह सिद्ध कर दिखाएँ कि ज्यादातर भारतीय कानूनको स्वीकार करनेके बजाय जेल, अपमान, अपने माल-असबाबकी जब्ती--यह सब सहन करने को तैयार हैं तो उस हालतमें जनरल स्मट्स, चाहे उनके पास कोई जाये या न जाये, कहेंगे, "बेशक, ये ऐसे लोग हैं जिन्हें मैं अपना नागरिक कहने में गर्व मानूँगा, जिन्हें मैं अपना समकक्ष सहनागरिक समझूँगा और जो राष्ट्रके कामके होंगे।" किन्तु यदि आप मोर्चेपर इस तरह न डटे तो जनरल स्मट्स बेशक यह भी कहेंगे, "अच्छी बात है, १०,००० भारतीय उपनिवेशमें रहें; हम उन्हें कुत्तोंकी तरह रख सकते हैं और अपनी मौत मरने दे सकते हैं।" अपनी स्वाभाविक मौत तो वे ट्रान्सवालके बाहर बहुत दूर वहाँ मरेंगे जहाँ उन्हें जमीनका एक टुकड़ा प्राप्त होगा। किन्तु यदि उन्हें शानदार मृत्यु, मनुष्योचित मृत्यु पानी है तो उसके लिए उनके सामने एक ही मार्ग है। यदि संयोगसे ऐसा हो कि यह मार्ग अपनानेपर भी आपमें से हरेक आदमीको ट्रान्सवाल छोड़ना पड़े तो क्या यह श्रेयस्कर नहीं है कि पुराने एम्पायर नाटकघरकी सभा किये गये अपने पुनीत संकल्पको तोड़कर कायरोंकी तरह बने रहनेके बजाय उसे मनुष्यकी भाँति छोड़ दें। मेरा खयाल है, यदि उपनिवेशको यह विश्वास हो जाये कि हम लोग सच्चे हैं, अपने उद्देश्य, देश, धर्म और आत्मसम्मानके लिए कष्ट सहनेको तैयार हैं तो सारा उपनिवेश एक स्वरसे जनरल स्मट्ससे कहेगा कि आपको इन्हें देशसे बाहर निकाल देनेका अधिकार नहीं दिया गया है। ये भविष्यमें कोई आव्रजन नहीं चाहते। ये लोग यहाँ रहकर गोरोंके साथ अनुचित स्पर्धा नहीं चाहते। जो समाज इस प्रकारका संघर्ष करने की क्षमता रखता है, वह गलत ढंगकी होड़में नहीं उतरेगा और ऐसे किसी भी कानूनको मान लेगा जो सभीके भलेके लिए बना हो, मुट्ठी-भर दूकानदारोंकी भलाईके लिए हर्गिज नहीं। यदि बेशके सर्वसामान्य हितके लिए दूकानोंका नियमन करना आवश्यक हो तो अपनी ओरसे हमने असंख्य बार ऐसा करने को कहा है। ये उपनिवेशको भारतीयोंसे भर नहीं देना चाहते। किन्तु उन थोडेसे भारतीयोंको, जिन्हें ट्रान्सवालमें बने रहनेका अधिकार प्राप्त हैं, इस शक्तिशाली साम्राज्यके सन्नागरिकोंकी हैसियतसे रहने दिया जाना चाहिए, और जब तक आपसे बने, उन्हें पशुओंकी तरह नहीं रखना चाहिए। (हर्ष-ध्वनि)

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९०८