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१६. संदेश: 'रैंड डेली मेल' को

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी १०, १९०८]

'रेंड डेली मेल' के प्रतिनिधिने श्री गांधीके जेल जानेसे पहले उनका अन्तिम संदेश माँगा। संदेश इस प्रकार था:

यह लड़ाई मैंने प्रार्थनापूर्ण भावसे, अत्यन्त नम्रताके साथ और हेतुको पूर्ण रूपसे न्याययुक्त मानते हुए शुरू की है। मुझे आशा है कि किसी दिन उपनिवेशवासी मेरे देशभाइयोंके साथ न्याय करेंगे। जहाँतक मेरे देशभाइयोंकी बात है, उनसे तो मुझे यही आशा है कि वे अपने पुनीत और गम्भीर संकल्पपर दृढ़ रहेंगे। ऐसा करनेमें उनकी कुछ भी हानि होनेवाली नहीं है। यदि उन्हें इसमें अपना सर्वस्व भी गँवाना पड़े तो इस दृढ़ताके कारण साथियोंकी नजरोंमें वे ऊँचे ही उठेंगे। मैं निश्छल भावसे कहता हूँ कि मुझे गिरफ्तार करके जनरल स्मट्सने एक बड़ा शानदार काम किया है। उनकी धारणा है कि मैंने अपने देशभाइयोंको गुमराह किया है। परन्तु मैंने ऐसा किया है, इसका भान मुझे नहीं है। हाँ, यह हो सकता है कि मैं खुद ही गलतीपर होऊँ। जो हो, मेरा क्षेत्रसे हटाया जाना यह स्पष्ट कर देगा कि यथार्थ में परिस्थिति क्या है, असली या बनावटी। इसलिए बात तो पूरी तरह हमारे ही हाथ है।

[ अंग्रेजीसे ]
रैंड डेली मेल, ११-१-१९०८

१७. प्रार्थनापत्र:[१] जेल-निदेशकको

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी २१, १९०८][२]

महामहिमकी जोहानिसबर्ग-जेलमें इस समय कैद

निम्न हस्ताक्षरकर्ताओंका प्रार्थनापत्र

नम्र निवेदन है कि,

हम सब प्रार्थी एशियाई हैं और संख्यामें कुल इक्कीस हैं। हममें से अठारह ब्रिटिश भारतीय और तीन चीनी हैं। अठारह भारतीयोंको जलपानमें मकईका दलिया दिया जाता है। बाकी चौदह बारके खानेमें सात बार चावल और घी, तीन बार सेम और चार बार मकईका दलिया होता है। मकईके दलियेके साथ शनिवारको आलू और रविवारको शाक दिये जाते हैं। धार्मिक कारणों से उक्त सब लोग शाकाहारी हैं; कुछ केवल इसलिए शाकाहारी हैं, क्योंकि उनको धर्मानुकूल मारे गये पशुओंका मांस या उचित मांस नहीं मिलता। चीनियोंको चावल और घीके बजाय समूची मकई और चर्बी दी जाती है। सब प्रार्थियोंको या तो यूरोपीय खाना

  1. यह "मेरे जेलके अनुभव-२" पृष्ठ १३९-४१ से लिया गया है और इसका मसविदा गांधीजी ने तैयार किया था, पृष्ठ १४७।
  2. यह प्रार्थनापत्र २१ जनवरी १९०८ को लिखा और भेजा गया था। इसी दिन ७६ अन्य सत्याग्रही भी गांधीजी तथा उनके साथी कैदियोंमें आ मिले थे। देखिए "मेरा जेलका अनुभव [२]", पृष्ठ १३७ तथा "मेरा जेलका अनुभव [३]", पृष्ठ १४७।