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भाषण: ब्रिटिश भारतीय संघकी सभा में

मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ और आशा रखता हूँ कि यदि भविष्यमें फिर कभी ऐसा अवसर आया तो हम लोग सत्य, मान-मर्यादा और आत्मसम्मानकी खातिर जेल जाने अथवा अन्य किसी प्रकारकी मुसीबत झेलनेको--यदि उसे मुसीबतके नामसे पुकारा जाये--तैयार रहेंगे।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १५-२-१९०८

२२. भाषण: ब्रिटिश भारतीय संघकी सभामें[१]

[ जोहानिसबर्ग
जनवरी ३१, १९०८]

जिस भगवान्पर विश्वास रखकर [ मैंने ] यह संघर्ष शुरू किया था और लोगों को इसे चलानेकी सलाह दी थी, उस ईश्वरकी दी हुई इस अप्रत्याशित जीतपर उसीका आभार मानना है। ईश्वर सचाईको हमेशा मदद पहुँचाता है, ऐसा मैं मानता आया हूँ और इसलिए मैंने उसके नामपर संघर्ष शुरू किया था। उसमें इस दर्जे तक फतह मिली है। दी हुई सजा वापस लेकर और जेलके दरवाजे खोलकर सरकारने लोगोंको छोड़ दिया, इसका कारण क्या है? अपनी सचाई और दृढ़ता ही। मैं कहता था कि यदि हम सचाईपर ही चलेंगे तो यही गोरे हमारी तरफदारी करेंगे और हुआ भी वैसा ही। आजतक हमारे सच्चे संघर्षमें गोरोंने जो सहायता की है, हम उसके लिए भी आभारी हैं। उन लोगोंके प्रयत्न करनेका कारण भी यह है कि ईश्वरने उनके हृदयमें यह प्रेरणा उत्पन्न की कि मेरे सेवकोंपर जो अत्याचार हो रहा है, उसके लिए संघर्ष करो।

मेरे यह कहनेकी तो कोई जरूरत ही नहीं रहती कि जनरल स्मट्सने अपने एक भाषणमें[२] कहा है कि सबको जेलमें ठूँस देना भी सम्भव नहीं है। इस सबसे प्रकट होता है कि समाज एक होकर काम करे तो विजय अवश्य होती है। अब हमें अपनी शिनाख्त और कसौटीके विचारसे स्वेच्छया पंजीयन करा लेना है और सरकारने यह मंजूर किया है। इससे खूनी कानून सदाके लिए समाप्त हो जाता है। कानूनके कारण हमें जो कलंक सहना पड़ता था वह अब खत्म हो गया है। जो शिक्षित हैं और जिनके जमीन-जायदाद वगैरह है, सरकार उनके हस्ताक्षर स्वीकार करेगी और अशिक्षितोंको आवेदनपत्रपर दस अँगुलियाँ देनी पड़ेंगी। यद्यपि मैं स्वयं इसके विरुद्ध हूँ और मैं सरकारसे इसे हटवानेके लिए भरसक लड़ता रहूँगा, फिर भी यदि सरकार न माने और यदि अँगुलियोंकी छाप देनी ही पड़े तो इसमें मैं कुछ भी

  1. गांधीजीके जेलसे छूटनेके दिन शामको ब्रिटिश भारतीय संघके तत्वावधानमें एक सार्वजनिक सभा हुई थी, जिसमें उन्होंने अपने साथी भारतीयोंको "समझौते" की शर्तोंके बारेमें बताया था। यह भाषण "समझौतेका खुलासा" शीर्षकसे केवल गुजराती विभागमें प्रकाशित हुआ था।
  2. मेविलमें दिया गया भाषण; देखिए पादटिप्पणी, पृष्ठ १३।