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भेंट: रायटरको

करना है। संसदके बैठते ही [ एशियाई पंजीयन ] कानून रद होगा और प्रवासी कानूनमें फेरफार होगी और इसके द्वारा डर्बन जैसा अधिवासी प्रमाणपत्र मिलेगा।

जिन्होंने हमें सच्ची मदद पहुँचाई है हमें उनका एहसान मानना है। इनमें से एक श्री पोलक[१], दूसरे श्री रिच[२] और 'लीडर' के सम्पादक श्री कार्टराइट[३] हैं। उसी प्रकार लन्दनकी समितिके सदस्य तथा अन्य जिन लोगोंने संघर्षमें योग दिया है, उनका आभार माननेका प्रस्ताव पास करना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८

२३. भेंट: रायटरको

जोहानिसबर्ग
जनवरी ३१, १९०८

श्री गांधीने भेंटमें कहा कि जिन्होंने अपने अधिवासका अधिकार सिद्ध कर दिया है, उन्हें उपनिवेशमें छेड़छाड़से मुक्त रखकर छोड़ देना ही काफी नहीं होगा; बल्कि उन्हें हर प्रकारका प्रोत्साहन देना चाहिए, ताकि वे एक सड़ा हुआ घाव न रहकर, जहाँतक हो सके समाजमें घुलमिल जायें और दक्षिण आफ्रिकाके भावी राष्ट्रका अंग बन जायें। प्रमुख जातिको उस समयकी प्रतीक्षा करनी चाहिए जब निम्न स्तरकी जातियाँ सभ्यताकी मापमें ऊँची उठा दी जायें। श्री गांधी जनरल स्मट्ससे इस बातमें सहमत हुए कि नेटालमें गिरमिटिया प्रथा किसी भी मूल्यपर बन्द हो जानी चाहिए।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडिया, ७-२-१९०८
  1. हैरी सॉलोमन लिऑन पोलक, ट्रान्सवाल क्रिटिकके सहायक सम्पादक; गांधीजीसे जोहानिसबर्गके शाकाहारी भोजनगृहमें अचानक मुलाकात होनेके बाद वे इंडियन ओपिनियनमें आ गये। उन्होंने फीनिक्सके जीवनको उसी प्रकार अपनाया था "जिस प्रकार बतख पानीके जीवनको अपनाती है।" गांधीजी, जो उनके विवाहके अवसरपर शहवाला बने थे, उनके बारेमें कहते हैं, "हम सहोदर भाइयोंकी तरह रहने लगे।" १९०६ में गांधीजीके इंग्लंड जानेके बाद उन्होंने इंडियन ओपिनियनके सम्पादनका भार सम्हाला। १९१३ में ट्रान्सवालके 'महान अभियान' के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया। देखिए आत्मकथा, अध्याय १८, २१ और २२ तथा दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २३ और ४५।
  2. एल० डब्ल्यू० रिच थिर्योसफिस्ट थे और गांधीजीके पास एक उम्मीदवार वकील्के रूपमें आनेसे पहले वे जोहानिसबर्गकी एक व्यावसायिक फर्मके प्रबन्धक थे। लन्दनसे उन्होंने बैरिस्टरीकी परीक्षा पासकी (देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ७१ और १२); वे दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके मन्त्री रहे (देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २४३) और बादको उसके "वास्तविक प्रणेता" बन गये। देखिए आत्मकथा, भाग ४, अध्याय ४ और १३ तथा दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय, १४ और २३। दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंपर लिखी उनकी पुस्तिकाके लिए, देखिए खण्ड ७, परिशिष्ट ८।
  3. अल्बर्ट कार्टराइट, ट्रान्सवाल लीडर के सम्पादक; गांधीजीसे उनका सम्पर्क सन् १९०६ में इंग्लैंडमें हुआ था। जब गांधीजी प्रिटोरिया जेलमें थे तब उन्होंने श्री स्मट्स और गांधीजीके बीच मध्यस्थता की थी। तबसे पूरे दक्षिण आफ्रिकी संघर्ष में वे "शान्तिके दूत" का कार्य करते रहे। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २१ और २५ ।