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२६. पत्र[१] : जनरल स्मट्सको

जोहानिसबर्ग,
फरवरी १, १९०८

प्रिय श्री स्मट्स,

गत गुरुवारको मेरे और श्री चैमनेके बीच जो बातचीत हुई उसके पश्चात् मैंने आपसे पुनः भेंट करनी चाही थी और श्री लेनने[२] सूचित किया था कि मेरे जानेके पहले आपसे मिलना हो सकेगा। परन्तु वैसा सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ।

श्री चैमनेसे जो बातचीत हुई उसने मुझे थोड़ा बेचैन कर दिया; क्योंकि वे तब भी एशियाई कानूनका राग अलाप रहे थे। वस्तुतः उनकी बातसे मैंने यह समझा कि अब पंजीयनका जो कार्य होगा उसे उक्त अधिनियमके अन्तर्गत वैध रूप दे दिया जायेगा। जब आपसे भेंट हुई थी तब मैंने ऐसा बिलकुल नहीं समझा था। और यह बात सर्वश्री क्विन, नायडू और मेरे संयुक्त-पत्रसे[३] भी स्पष्ट हो जाती है। मेरी बड़ी इच्छा है कि यह कार्य बिना किसी कठिनाईके और आपको पूर्ण सन्तोष देने योग्य ढंगसे पूरा हो जाये। इसलिए मैं स्वभावतः इस बातके लिए बहुत चिन्तित हूँ कि कोई भी गलतफहमी बीचमें न आ पाये। कृपया मेरी इस बातका भी विश्वास कीजिए कि एशियाई-विरोधी आन्दोलनकारियोंके शोर-गुलके कारण उत्पन्न आपके मार्गकी कठिनाइयाँ दूर करनेमें मैं कुछ उठा नहीं रखूँगा। इसलिए, क्या आप इस सम्बन्ध में मुझे पुनः आश्वस्त करनेकी कृपा करेंगे? स्वेच्छया पंजीयनको एशियाई अधिनियमके अन्तर्गत वैध बनाना फिरसे इस प्रश्नके मर्मको कुरेदना है। आपने कृपापूर्वक मुझसे कहा था कि इसको कानूनी रूप देनेके तरीकेपर आगे चलकर हमारे बीच विचार-विमर्श किया जायेगा। मैं पहले ही सुझाव दे चुका हूँ कि प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियममें जितना आवश्यक हो उतना संशोधन करके उसके अन्तर्गत यह कार्य करना सर्वोत्तम उपाय है।

मैं यह भी माने लेता हूँ कि आवेदन और पंजीयनका फार्म समाजके नेताओंसे सलाह करके तय किया जायेगा। और यह भी, कि इसे यथासम्भव शीघ्र किया जायेगा, जिससे पंजीयनका कार्य आगे बढ़े।

इसके अलावा, मैंने दस अँगुलियोंके निशानके बारेमें श्री लेनके पास एक सन्देश छोड़ दिया था। इस बारेमें मैंने श्री चैमनेसे विचार-विनिमय किया था, और वे दसों अँगुलियोंके निशानोंका कोई भी औचित्य नहीं बता सके; बल्कि उन्होंने स्वीकार किया कि शिनाख्तके लिए एक अँगूठेका निशान बहुत काफी है। व्यक्तिगत रूपसे मेरे लिए अँगूठेकी निशानी


८-४
  1. फरवरी १ से लेकर जून १३, १९०८ तक गांधीजी और जनरल स्मट्सके बीच जो पत्र-व्यवहार हुआ वह "क्या मसूखीका वादा किया गया था: सम्पूर्ण पत्र-व्यवहार" शीर्षकसे इंडियन ओपिनियनमें प्रकाशित किया गया था। इस पत्रकी एक नकल रिचने अपने २७ जुलाई १९०८ के पत्रके साथ संलग्न पत्रके रूपमें उपनिवेश कार्यालयको भी भेजी थी।
  2. स्मट्सके निजी सचिव।
  3. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।