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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

अथवा समस्त अँगुलियोंकी छाप देना एक ही सा है; किन्तु एशियाइयोंमें बहुतसे ऐसे हैं जिन्हें दूसरी बातमें अपार कठिनाई प्रतीत होती है, और चूँकि मैं जानता हूँ कि आप केवल कारगर शिनाख्त चाहते हैं, इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप अँगूठेका निशान स्वीकार करेंगे। अपनी पूछताछके उत्तरमें मुझे गिरमिटिया प्रवासियोंके संरक्षक और नेटालके मुख्य प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिकारीके तार मिले हैं। संरक्षक महोदय लिखते हैं:

गिरमिटिया भारतीयोंसे, उनके आगमनपर, दसों अँगुलियोंके निशान लेनेका तरीका अप्रैल १९०३ से प्रारम्भ हुआ, जब वह वांछनीय समझा गया।

प्रवासी प्रतिबन्धक अधिकारीने, जो स्वतन्त्र भारतीयोंके आव्रजनका नियन्त्रण करता है, नीचे लिखे अनुसार उत्तर दिया है:

आपके आजकी तारीखके सिलसिलेमें--इस विभागसे जो प्रमाणपत्र दिये जाते हैं, उनके लिए केवल दोनों अंगूठोंके निशान आवश्यक हैं।

अब आप देखेंगे कि कैप्टन (?)[१] प्रश्न-चिह्न मूलमें है। क्लार्कने आपको जो सूचना दी है वह गलत है। मेरे दावेके पक्षमें आव्रजन-विभाग और संरक्षक- विभाग द्वारा बरता जानेवाला भेद भी अत्यन्त मूल्यवान प्रमाण है। संरक्षकको एशियाइयोंके एक ऐसे वर्गके लोगोंसे साबिका पड़ता है जिनके सामने अपनी शिनाख्त छिपानेके अनेक प्रलोभन होते हैं। इसलिए उनके सम्बन्धमें वर्गीकरण आवश्यक है। आव्रजन विभागको एशियाइयों तथा अन्य लोगोंके ऐसे तबकेसे काम पड़ता है जिसे नेटालमें प्रवेश करने और वहाँ बने रहनेका दावा सिद्ध करनेके लिए हमेशा अपनी शिनाख्त प्रमाणित करनी पड़ती है। इसलिए उस विभागको केवल अँगूठोंके निशानोंकी आवश्यकता होती है। क्या इससे यह पूरी तरह प्रकट नहीं होता कि आपको समस्त अँगुलियोंके निशानोंकी बिलकुल जरूरत नहीं है? और जैसा कि मेरे विशेषज्ञ सलाहकार बताते हैं, वर्गीकरणका तरीका बिलकुल गैर-जरूरी होने के अलावा फक्त शिनाख्तके तरीकेके मुकाबलेमें महँगा भी है। केपमें भी सिर्फ अँगूठेके निशान ही जरूरी होते हैं। और इस सिलसिलेमें मैं आपके मनमें यह अवश्य बैठा देना चाहता हूँ कि विवेकपर छोड़ देनेकी बातका परिणाम पक्षपात और अन्तमें जालसाजी भी हो सकता है। कहनेकी आवश्यकता नहीं है कि धनसे भरे-पूरे किसी व्यक्तिका ईमानदार होना जरूरी नहीं है और फिर भी, चूँकि वह दूसरी तरह जाना-बूझा हो सकता है, उसका केवल हस्ताक्षर स्वीकार कर लिया जायेगा। मेरे विचारसे, अपवाद केवल उन लोगोंके मामलेमें किया जाना चाहिए जो आव्रजन अधिनियमके अन्तर्गत निर्धारित शैक्षणिक परीक्षा पास कर लें। निःसन्देह, उनका तो व्यक्तित्व ही उनकी शिनाख्त है। परन्तु दूसरोंके बारेमें मैं अपने अनुभवके बलपर यह आग्रह करता हूँ कि विवेकवाली बात छोड़ दी जाये। यदि आपने दसों अँगुलियोंके निशानोंका आग्रह रखा तो विवेक सम्बन्धी धाराके प्रयोगके लिए प्रार्थनापत्रोंकी भरमार हो जायेगी। और चूँकि मेरे पास अँगुलियोंके निशानोंके बारेमें विशेषज्ञकी सम्मति मौजूद है, मैं निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि शिनाख्तके लिए आपको अँगुलियोंके निशानोंकी आवश्यकता नहीं है।

मैं यह भी सूचित करना चाहता हूँ कि भारतीयोंको बिना परवानेके व्यापारकी खुली छूट देनेसे उपनिवेशियोंमें हो-हल्ला मचेगा। क्या आपका यह खयाल नहीं है कि उन्हें

  1. प्रश्न-चिह्न मूलमें है।