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पत्र: श्री और श्रीमती वॉगलको

परवाने दे देना अथवा कच्ची रसीदें देकर उनसे परवानोंका शुल्क जमा करा लेना ज्यादा अच्छा होगा?

मैं आशा करता हूँ कि इस पूर्णतया व्यक्तिगत और गोपनीय पत्रको आत्मीयताके स्वरमें लिखकर मैंने उचित ही किया है; और आपका उत्तर भी ऐसा ही माना जायेगा। मैं सार्वजनिक रूपसे जो वक्तव्य दे रहा हूँ, उनमें से किसीमें भी यदि आपको थोड़ा-भी अनौचित्य दिखा हो तो मेरी गलती सुधारनेकी कृपा करें।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी'

जनरल जे० सी० स्मट्स
प्रिटोरिया
[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, ४-७-१९०८

तथा इंडिया ऑफिस: जूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, २८९६/०८

२७. पत्र: श्री और श्रीमती वॉगलको

जोहानिसबर्ग
फरवरी १, १९०८

प्रिय श्री और श्रीमती वॉगल[१],

बधाईके[२] लिए, कृपया, मेरा धन्यवाद स्वीकार करें। निस्संदेह मेरा यह विश्वास है कि आपकी ये शुभ कामनाएँ केवल औपचारिक नहीं, बल्कि आपके हृदयकी अभिव्यक्ति हैं।

मुहम्मद खाँने[३] कल मुझे बताया कि श्रीमती वॉगलकी तबीयत अच्छी नहीं रहती। यह सुनकर मुझे दुःख हुआ। चाहता हूँ कि मैं स्वयं उन्हें देखनेके लिए आऊँ और साथ ही आप दोनोंको व्यक्तिगत रूपसे धन्यवाद दूँ। किन्तु फिलहाल तो मुझे कामसे छुटकारेकी बात ही नहीं सोचनी है। तोड़नेका काम समाप्त हो चुका; अब बनानेका कार्य शुरू हुआ है, जो उससे कहीं ज्यादा कठिन है। किन्तु यह समझकर कि मैंने अपने बलका नहीं बल्कि सत्यके, जिसे दूसरे शब्दोंमें ईश्वर कहते हैं, बलका भरोसा किया है, मैं बिलकुल निश्चिन्त हूँ।

आपका हृदयसे,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ४४०७) से। सौजन्य: अरुण गांधी।

  1. वॉगल एक वस्त्र-विक्रेता थे। उन्हें तथा उनकी पत्नीको भारतीय संघर्षसे बड़ी सहानुभूति थी। श्रीमती वॉगल भारतीय महिलाओंमें गहरी दिलचस्पी लेती थीं और उन्हें पढ़ाया भी करती थीं।
  2. आंदोलनके प्रथम दौरमें गांधीजीके सफल होने तथा उनके जेलसे छूटनेपर।
  3. गांधीजीके एक कर्मचारी तथा सत्याग्रही।