पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
५३
भेंट: पत्र--प्रतिनिधियोंको

उपनिवेशमें बने रहने या उपनिवेशमें पुनः प्रवेशका अधिकार है, पूरी-पूरी शिनाख्त देना हमारा नैतिक कर्तव्य है। अगर हम यह करनेमें सफल हो गये तो ब्रिटिश भारतीयोंके कट्टरसे-कट्टर विरोधीको भी मानना पड़ेगा कि जो लोग उपनिवेशके स्थायी निवासी होनेका अपना अधिकार सिद्ध कर दें और सरकारको अपनी पूरी-पूरी पहचान दे दें उन्हें उपनिवेशमें न केवल बगैर किसी छेड़छाड़के रहने दिया जाये, बल्कि ऐसे लोगों को हर तरहका प्रोत्साहन दिया जाये, ताकि वे उपनिवेशमें एक सड़े हुए घावके रूपमें पड़े रहने के बदले, जहाँतक सम्भव हो, यहाँके समाजमें घुल-मिल जायें और भावी दक्षिण आफ्रिकी राष्ट्रके एक अंग बन जायें। मेरा विश्वास है कि दक्षिण आफ्रिकामें असली राजनीतिक निपुणता यहाँके किसी वर्गके निवासियोंके साथ अछूतों या पशुओंकी तरह व्यवहार करनेमें नहीं है, बल्कि मनुष्योचित व्यवहार करने और उन्हें अधिक उन्नत बनानेमें है। अनुचित होड़ और इस तरहके सवाल केवल इसलिए पैदा होते हैं कि कभी-कभी ऐसी होड़के उदाहरण देखनेमें आते हैं। यदि दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाली विभिन्न कौमोंको नागरिकताका सही-सही ज्ञान करा दिया जाये तो इन सारी बातोंका निश्चय ही इलाज किया जा सकता है। नागरिकतासे एक क्षणके लिए भी मेरा अभिप्राय सारी कौमोंको मताधिकार देनेका दावा पेश करना नहीं है। परन्तु मैं यह जरूर चाहता हूँ कि शासक कौम उस दिनकी प्रतीक्षा करे जब नीचे स्तरवाले समाजोंका दर्जा ऊपर उठाया जायेगा। सारे प्रश्नको इस दृष्टिसे देखते हुए नेटालके गिरमिटिया भारतीयोंके सम्बन्धमें जनरल स्मट्सने जो शब्द कहे हैं उनसे पूरी तरहसे सहमत होनेमें कमसे कम मुझे कोई पशोपेश नहीं है। सच तो यह है कि वहाँके ब्रिटिश भारतीय सदासे यही कहते रहे हैं। कि किसी भी कीमतपर गिरमिटिया मजदूरोंकी प्रथाको बन्द कर देना चाहिए। भारतीयों, अर्थात् स्वतंत्र भारतीयोंने कभी इस प्रथाको न तो चाहा है और न बढ़ावा ही दिया है। और मैं स्वीकार करता हूँ कि यदि नेटालमें गिरमिटिया मजदूरोंकी प्रथा न होती तो एशियाई प्रश्नने जो तकलीफ दी है, वह न होती। निश्चय ही मेरा यह विश्वास है कि जबतक नेटाल बाहरसे गिरमिटिया मजदूर लाता रहेगा तबतक एशियाइयों-सम्बन्धी कोई-न-कोई परेशानी बनी ही रहेगी। परन्तु मेरे इस कथनका कोई यह अर्थ न लगा ले कि गिरमिटिया मजदूर आजाद होकर ट्रान्सवालमें घुसे चले आ रहे हैं। मैं जानता हूँ कि पहले इस तरहकी बातें कही गई हैं। परन्तु मैं निश्चित जानता हूँ कि वे एकदम निराधार हैं। इसका अन्य कोई कारण न हो तो भी कमसे कम एक कारण तो है ही कि उनपर बहुत कड़ी निगरानी है। और भारत से आये हुए किसी भारतीयको बगैर निःशुल्क पासके उपनिवेशसे बाहर कहीं जाने नहीं दिया जाता। नेटालका प्रवासी विभाग प्रत्येक गिरमिटिया भारतीयका पता लगा सकनेकी स्थिति में है।

किला-जेलके अनुभवोंके बारेमें पूछे जानेपर श्री गांधीने कहा:

जहाँतक जेल अधिकारियोंका प्रश्न है, उन्होंने मुझे आराम पहुँचानेमें कोई बात उठा नहीं रखी। गवर्नर तथा अन्य समस्त अधिकारियोंका व्यवहार बड़ा कृपापूर्ण और सौजन्ययुक्त रहा। गवर्नर प्रतिदिन आते थे और नियमित रूपसे प्रतिदिन पूछते थे कि हमारी कोई शिकायत या जरूरत तो नहीं है। और अगर कुछ होता तो तुरन्त उसका उपाय हो जाता। अगर हमें किसी चीजकी जरूरत होती तो जेलके नियमोंके अनुसार पूरी की जा सकनेवाली कोई भी बात तुरन्त पूरी कर दी जाती। हमें जेलके पुस्तकालयसे तथा बाहरसे भी पुस्तकें प्राप्त करनेकी सुविधा दी गई थी।