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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधीने यह भी कहा कि कलके 'ट्रान्सवाल लीडर' में[१] छपे हुए कुछ शब्दोंका अर्थ कहीं गलत न लगा लिया जाये इसलिए यह कह देना जरूरी है कि जहाँतक उनका सम्बन्ध है वहाँतक जेलमें पूरी सफाई रखी जाती थी। इसका अपवाद सिर्फ वह जगह थी, जहाँ ऐसे कैदियोंको जिन्हें उनकी अपनी-अपनी कोठरियोंमें नहीं भेजा जा सकता था, रुकना पड़ता था। वहाँपर खटमल बहुत थे। ये लकड़ीकी दरारोंमें से निकलकर आते थे। इसमें दोष जेलके अधिकारियोंका नहीं था, बल्कि इसका कारण था जगहकी बेहद कमी।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८

२९. पत्र: 'इंडियन ओपिनियन' को

जोहानिसबर्ग
फरवरी २, १९०८

सम्पादक
'इंडियन ओपिनियन'
महोदय,

संघ तथा मेरे नाम और उसी प्रकार रिहा होनेवाले भारतीयोंके नाम बधाईके तारोंका पार नहीं है। पत्र भी बहुत आये हैं। सबको अलग-अलग जवाब देनेका समय नहीं है, इसलिए मैं अपने साथियोंकी और अपनी ओरसे तार भेजनेवाले तथा पत्र लिखनेवाले सभी भाइयोंको आपके इस अखबार द्वारा धन्यवाद देनेकी अनुमति चाहता हूँ। और अलग-अलग उत्तर नहीं दे पाया हूँ, इसकी क्षमा माँगता हूँ और मैं ऐसी कामना करता हूँ तथा ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि जब फिर ऐसा अवसर आये तब ये कैदी तथा अन्य हम सब भारतीय सत्य और देशके निमित्त वैसा ही करें जैसा भारतीय कैदियोंने इस समय किया है।

आपका, आदि,
मोहनदास करमचंद गांधी

गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८
  1. ट्रान्सवाल लीडरमें गांधीजीकी रिहाईकी और ब्रिटिश भारतीयों एवं जनरल स्मट्सके बीच हुए समझौते की शर्तोंकी घोषणा एक खबरमें की गई थी। यहाँ कदाचित् उसीका उल्लेख किया गया है। खबर यह थी: "...स्वयं एशियाई जिस राहतसे एक बार फिर खुली हवामें साँस लेंगे वह शायद जेल अधिकारियोंकी राहतसे बड़ी न होगी। जेल-अधिकारियोंको उन अनिच्छुक मेहमानोंसे मुक्ति मिल जायेगी, जिन्होंने अपनी संख्याके कारण, अपने विशिष्ट भोजनके कारण और अपने निरपराधी स्वरूपके कारण अनेक सरकारी जेलोंके साधनोंकी कड़ीसे-कड़ी परीक्षा की है। इन कैदियोंको अत्यन्त कष्ट रहा है। जोहानिसबर्ग जेलके एक छोटेसे चौकमें, जिसमें ४५ बंदियोंकी गुंजाइश है, १५० से अधिक लोगोंको इस कष्टप्रद मौसममें अपने दिन बिताने पड़े हैं। दो भारतीय पंक्तिमें खड़े-खड़े गर्मीके कारण बेहोश होकर गिर पड़े। एशियाइयोंकी यह बड़ी शिकायत है कि जोहानिसबर्ग जेलमें प्रवेश के समय जिस कमरेमें कैदियोंको कपड़े बदलवानेके लिए ले जाया जाता है, उसकी छत और दीवारोंमें इतने खटमल, पिस्सू आदि हैं कि उनसे अपने कपड़ों और बालोंको बचाना असम्भव है। ये उसकी पुरानी और सड़ी हुई लकड़ी में पैदा हो गये हैं...।" यह खबर ट्रान्सवाल लीडर में ३१-१-१९०८ को छपी थी और इसलिए यह भेंट १ फरवरी १९०८ को हुई होगी।