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३०. भाषण: ब्रिटिश भारतीय संघको सभामें[१]

[ जोहानिसबर्ग ]

मैंने सत्याग्रहीकी हैसियतसे काम किया है और करूँगा। अर्थात् ईश्वरके सिवा मैं किसी औरसे डरूँ, यह नहीं हो सकता। कुछ लोगोंने धमकियाँ दी हैं कि "यदि समाज दस अँगुलियोंकी छाप देना स्वीकार कर लेगा तो मार पड़ेगी।" उन लोगोंको मैं बता देना चाहता हूँ कि मैं स्वयं जेलमें दो बार अँगुलियोंकी छाप दे चुका हूँ। इसलिए अगर मारना ही हो तो सबसे पहले मुझे मारें। मैं इसके खिलाफ मजिस्ट्रेटके सामने फरियाद करने नहीं जाऊँगा, बल्कि जो मारेगा उसका एहसान मानकर धन्यवाद दूँगा कि मेरे भाईकी लाठी मुझपर पड़ी। मैं इसमें अपनी इज्जत समझूँगा। जो काम हुआ है उसे मैंने ही किया है और आगे भी मैं ही जिम्मेदार रहूँगा। इसलिए किसी बातके लिए किसी दूसरेको उलाहना न दिया जाये बल्कि मुझे दिया जाये। मैं कौमका नेता बनकर घमण्ड करना अथवा प्रतिष्ठा पाना नहीं चाहता। मैं तो उसके सेवककी भाँति ही रहना चाहता हूँ। और उसके लिए मुझसे समाजकी जितनी सेवा बन पड़ेगी उतनी करनेमें मैं आनन्द मानूँगा। इसीमें मेरा गौरव भी है। वास्तविकताको प्रकट करना मेरा काम है। और यह मैं शुरूसे करता आया हूँ। नये कानूनमें केवल मेरे हस्ताक्षर लेकर पंजीयन करा लेनेके लिए कहा जाता तो भी मैं तो इनकार ही करता। नया कानून टूटा, इसलिए स्वेच्छापूर्वक पंजीयन करवानेको मैं इज्जतका काम समझता हूँ। कानूनके रद हो जाने से हमारी टेक, सौगन्ध और हठ, सबकी रक्षा हो जाती है। इससे मानो हमें कुछ मनुष्यता मिली। कानूनके बारेमें मैं जितना जानता हूँ और समझा सकता हूँ, उतना दूसरा कोई नहीं समझा सकेगा। इसमें मेरे अभिमानकी कोई बात नहीं है। परन्तु मैं जो सलाह दूँगा सो अपनी समझके अनुसार सही ही दूँगा। सन् १९०३ से आज तक की सारी घटनाओंको मैं अच्छी तरहसे जानता हूँ। आजतक की लड़ाईमें हमने अभीतक केवल एक यही काम किया है कि जमीन साफ कर ली है। अब उसपर मकान बनानेका काम बाकी है। मकान कैसे बाँधा जाये, उसकी रचना कैसी हो, यह सब अभी निश्चय करना है। अभी सवाल दस अँगुलियोंकी छाप देनेतक नहीं आया है। अगर देनी भी पड़े तो हम अपनी मर्जीसे ही देंगे। इस बारेमें मैं जो कुछ कर सकता हूँ सो कर रहा हूँ। ऐसा ही मैं पहले भी कह चुका हूँ। मुझे फिर कह देना चाहिए कि यह काम हमको बिलकुल खानगी तौरसे करना है। शोर नहीं करना है। यदि हम शोर करेंगे तो हमारी उतनी हानि होगी। हम हर हालतमें अत्यन्त नम्रतासे काम लें। जिस हिम्मतके साथ हमने सरकारसे लड़ाई छेड़ी, उसका परिणाम अच्छा ही निकलेगा। अब भी हमें हिम्मत ही रखनी है। मैं जो काम करता हूँ वह इसलिए नहीं कि मुझे कौमसे इज्जत या इनाम मिले। मैं तो यह सब कर्तव्य समझकर कर रहा हूँ और करता रहूँगा। कानूनके बारेमें यदि आप कुछ पूछना चाहें तो मेरा दफ्तर खुला है। मुझसे जो सलाह बन पड़ेगी, दूँगा। वह उचित लगे तभी उसपर अमल किया जाये, नहीं तो

  1. यह सभा २ फरवरी १९०८ को जोहानिसबर्ग में हुई। श्री ईसप मियाँ सभाके अध्यक्ष थे।