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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं। मैं हमेशा समाजके साथ हूँ। कानूनके बारेमें मैंने बहुत-सी बातें तो समझा ही दी हैं। फिर भी 'ओपिनियन' में और स्पष्ट किया जायेगा, उसे आप देख लें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८

३१. पत्र[१]: मगनलाल गांधीको

जोहानिसबर्ग
फरवरी ५, १९०८

चि० मगनलाल,[२]

मेरा इरादा था, तुम्हें गुजराती में लिखूँ, लेकिन लिख नहीं सकता। तुम्हारा पत्र देखा। पूरा विवरण भेजकर तुमने अच्छा किया। यह तुम्हारा कर्तव्य था। मुझपर ऐसी बातोंका प्रभाव नहीं हो सकता, और गम्भीर रूपसे तो किसी भी हालतमें नहीं, जैसा कि तुमपर होगा। इसके दो कारण हैं: (१) यह कि मैं काफी अभ्यस्त और परिपक्व हो गया हूँ; और (२) यह कि दूर होनेके कारण मैं सही दृष्टिकोण अपना सकता हूँ। डर्बनके असन्तोष से मैं जरा भी प्रभावित या परेशान नहीं हुआ हूँ। मैंने यह नहीं सोचा था कि यह इतना उग्र होगा; किन्तु यह अनपेक्षित भी नहीं है---तुम दोनों मुहावरोंका भेद समझते होगे। मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार हूँ। इसका सीधा-सादा और एकमात्र कारण यह है कि मैंने उस समस्त सहायताका उपयोग तो किया है जो प्राप्त हुई और जिसके लिए मुझसे वादे किये गये थे, लेकिन ऐसी किसी सहायतापर मैंने कभी अपना भरोसा नहीं रखा है। ज्यादासे-ज्यादा मैंने उन्हें ऐसे अनेक साधन माना है, जिनके द्वारा ईश्वर, या सत्यने अपना काम किया है। कारण, मैंने असंख्य अवसरोंपर यह देखा है कि कुछ खास आदमी वहीं तक वफादार रहे हैं जहाँतक उनके लिए अचेतन मनसे सत्यकी सेवा करना आवश्यक था; क्योंकि अपने भीतर सत्य न होनेके कारण वे उसी तरह दूर जा पड़े हैं जिस तरह अपना संरक्षण-कार्य समाप्त करते ही पेड़ोंकी छालें अलग हो जाती हैं। और जहाँतक तुमने इन घटनाओंसे अपने-आपको पस्त होने दिया है, वहाँतक तुम उनको आत्मसात् नहीं कर पाये हो और न ही कष्ट-सहनके परिमार्जक प्रभावको समझ सके हो।

मेरे लिए... इससे क्या फर्क पड़ता है, अगर वे थोड़े-से लोग भी, जो वास्तविक संघर्षको समझते हैं, मुँह मोड़ लें.....इस बस्तीमें न ठहरें[३] समझौता, कि एक समय आ सकता है जब हम रत्ती -रत्ती सहायतासे वंचित हो जायें? तब भी हम अपना कर्तव्य अडिग रूपसे, निरुत्साह या खिन्न हुए बिना, निभाते जायेंगे। वह समय अभी नहीं आया है, लेकिन जो लोग बुरेसे-बुरेके लिए तैयार हैं वे बीचकी स्थितियोंको बराबर दार्शनिक भावसे स्वीकार

  1. यह पत्र कहीं-कहीं फटा-फटा है। काले टाइपमें दिये गये शब्द पूरे पत्रके संदर्भमें अनुमानसे जोड़े गये हैं।
  2. मगनलाल गांधी (१८८३-१९२८); गांधीजीके चचेरे भाई खुशालचन्द गांधीके द्वितीय पुत्र; गांधीजीके इंग्लैंडके रास्ते भारतके लिए विदा होनेके बाद फीनिक्स आश्रमके और आगे चलकर सत्याग्रह आश्रम, साबरमतीके व्यवस्थापक।
  3. वहाँ मूल अंग्रेजीमें जो शब्द है उसका अर्थ होगा "कहे" ।