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नम्रता

कर सकते हैं। इसलिए तुम्हें ये बातें सुनकर अपने दिमागसे उसी तरह निकाल देनी चाहिए जैसे बत्तखकी पीठपर से पानी बह जाता है। मैं जानता हूँ कि वहाँके लोग जो प्रश्न उठा सकते हैं उनमेंसे कईके उत्तरकी आवश्यकता तुम्हें नहीं है। ऐसा एक भी प्रश्न नहीं है जिसपर मैंने विचार नहीं किया हो, जिसका समाधान मैंने अपनी शक्ति-भर नहीं कर लिया हो। आशा है, जब यह पत्र तुम्हारे पास पहुँचेगा, तुम स्वस्थ-सानन्द होगे।

मैं चाहता हूँ, फीनिक्स आकर तुम लोगों से मिलूँ, लेकिन अभीतक तो सम्भव नहीं है। फिर भी, महीने-भरमें वहाँ आ सकता हूँ।

वहाँ जो बात भी घटित हो, चाहे वह साधारण ही हो, उसके सम्बन्ध में मुझे पूरा विवरण भेजना कभी मत भूलो।

मोहनदासके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ] यह पत्र दूसरे लोगोंको भी पढ़ा देना। जो कुछ समझमें नहीं आये, मुझसे पूछो।

गांधीजी की लिपिमें गुजराती पश्चात्-टिप्पणी सहित तथा उनके हस्ताक्षरसे युक्त हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ४७९४) से। सौजन्य: श्री छगनलाल गांधी।

३२. नम्रता

एक भारतीय कहावत है कि "आमका पेड़ जितना अधिक फलता है उतना ही अधिक झुकता है"। इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ट्रान्सवालमें भारतीय सम्मानके साथ---और, उससे भी अधिक, अपने पवित्र संकल्पको तोड़े बिना---अपने संघर्षसे निकल आये हैं। उन्होंने जो कुछ भी कष्ट सहन किया है, वह उनकी आत्म-शुद्धिकी एक आवश्यक प्रक्रिया मानी जानी चाहिए।

समझौतेका मंशा उस कानूनको अन्ततोगत्वा रद करना है, जो आपत्तिकी आत्मा था। स्वेच्छया पंजीयन, जिसका प्रस्ताव अक्सर किया जाता रहा है, अब स्वीकार कर लिया गया है। और जो शर्त श्री गांधी, श्री क्विन और श्री नायडू द्वारा लिखित शानदार किन्तु साथ ही नम्रतापूर्ण पत्रमें दी गई है, वह यह है कि यह कानून उन लोगोंपर लागू नहीं होगा, जो अपने-आप पंजीयन करा लेंगे। शिनाख्तके सम्बन्ध में सरकारको जो कुछ चाहिए था प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार, दोनों पक्षोंको, वे जिस बात के लिए प्रयत्नशील थे, उसका सार मिल जाता है। इस दृष्टिकोणसे विचार करनेपर यह समझौता भारतीय समाज तथा सरकार--दोनोंके लिए समान रूपसे श्रेयस्कर है। सरकारने भारतीय-भावनाको---आखिरी क्षणोंमें सही---जानने-समझनेकी आवश्यकताका अनुभव करके अपनी शक्तिका परिचय दिया है। बहु-चर्चित अँगुलियोंके निशानकी बात रह जाती है, यद्यपि उसमें आवश्यकतानुसार फेरबदलकी गुंजाइश है और भारतीय समाजके द्वारा उसका अंगीकृत किया जाना उसकी दूरदर्शिता ही प्रमाणित नहीं करता, बल्कि यह भी प्रकट करता है कि भारतीय-आपत्ति कभी भी अँगुलियोंके निशानपर केन्द्रित नहीं रही है।

इस समझौतेको हमें भारतीयोंकी विजयका नाम नहीं देना चाहिए। इस सम्बन्ध में 'विजय' का प्रयोग उस शब्दका दुरुपयोग होगा। परन्तु यदि यह शब्द इस सम्बन्धमें