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सत्यकी जय

थे, पंजीयन कर दिया जायेगा। शिनाख्तके तरीकोंके बारेमें सामान्य तौरपर निम्नलिखित बातें सभी अभिप्रायों और हेतुओंके लिए नियमावलीका काम दे सकती हैं:

(क) जो लोग जायदाद सम्बन्धी योग्यता रखते होंगे अथवा अन्य किसी प्रकारसे ट्रान्सवालके निवासियोंके रूपमें परिचित हो चुके होंगे उनसे, पंजीयकके स्वविवेकके अनुसार अँगुलियोंके निशानोंके स्थानपर हस्ताक्षर --ऐसे हस्ताक्षर जो सुस्पष्ट हों और जिनसे हस्ताक्षर करनेवालेके व्यक्तित्वकी छाप मिलती हो, और जो अक्षरोंके आकार-मात्र न हों--- स्वीकार कर लिये जायेंगे।

(ख) प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियममें दी हुई शैक्षणिक कसौटीपर खरी उतरने योग्य पर्याप्त शिक्षा पाये हुए लोगों से अँगुलियोंके निशानके स्थानपर हस्ताक्षर स्वीकार किये जायेंगे।

(ग) उन व्यक्तियोंको, जिन्हें अँगुलियोंके निशान देनेके बारेमें वास्तविक अथवा अन्तरात्माप्रेरित आपत्ति होगी और जो उपर्युक्त दो धाराओंके अन्तर्गत नहीं आते, सभी अँगुलियोंकी छापके बजाय अँगूठा निशानी देनेकी इजाजत होगी।

ये बहुत उदार छूटे हैं, परन्तु, हमारी सम्मतिमें, भारतीयोंके लिए इन छूटोंका लाभ न उठाना ही अधिक शोभाजनक होगा। मुख्य बात हासिल हो ही चुकी है इसलिए हमारी रायमें अब प्रत्येक व्यक्तिको बिना किसी हिचकके अँगुलियोंकी छाप दे देनी चाहिए। कुछ भी हो, नेताओंको तो, जिन्हें अँगुलियोंकी छाप न देनेका अधिकार है, सबसे पहले अपना यह अधिकार छोड़ देना चाहिए और ऐसे निशान देनेकी रजामंदी प्रकट करनी चाहिए, ताकि शिनाख्तका काम सुविधाके साथ हो जाये और सरकारके लिए यह तरीका सुगमतर बन जाये। हमारा विश्वास है कि भारतीय समाज इस छूटका यथासम्भव सीमित उपयोग करके अपना सच्चा गौरव प्रकट करेगा। हमें मालूम हुआ है कि श्री ईसप मियाँ, श्री गांधी तथा अन्य लोगोंने, जिन्होंने इस आन्दोलनसे अपनेको एकरूप कर रखा है, इस छूटकी माँग न करनेका निश्चय कर लिया है।

[ अंग्रेजी से ]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८

३४. सत्यकी जय

" हे अर्जुन, तू सुख और दुःखमें, लाभ और हानिमें, जय और पराजयमें समान भाव रखकर युद्ध कर। इससे तुझे पाप नहीं लगेगा।[१]

हम यह मानते हैं कि ट्रान्सवालके भारतीयोंकी पूर्ण विजय हुई है। उन्होंने सोलह महीने टक्कर ली। सारी कौम एक हो गई। समस्त दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी भावना जाग्रत हुई। जेल जानेका प्रण भी पूरा हुआ। और अनपेक्षित शीघ्रतासे समझौता हुआ। जेलके दरवाजे कैदकी मियाद पूरी होनेसे पहले ही खुल गये, यह अद्भुत घटना है। संसारके

  1. सुखे दुःखे सम थई, लाभालाभे जयाजये, युद्ध तुं कर हे पार्थ, तेथी पाप यशे नहि। [सुख-दुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ। ततो युद्धाय युज्यस्य नैवं पापमवाप्स्यसि॥ भगवद्गीता-२, ३८]