पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी अनुचित लोभ न किया जाये। हम तो अन्तःकरणसे यह देखना चाहते हैं कि कोई भी भारतीय झूठा न निकले और शत-प्रतिशत पंजीयन स्वीकृत कर लिये जायें। तब जो रंग जमेगा, और भारतीयोंकी जो जीत होगी उसे देखने के लिए देवता उतरेंगे। तब कानून अपने- आप रद होगा और तभी 'इंडियन ओपिनियन' को स्वर्णाक्षरोंमें प्रकाशित करनेका सुझाव मान्य होगा।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९०८

३८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी[१]

समझौता क्या है?

जनरल स्मट्सके नाम श्री गांधी, श्री नायडू और श्री क्विन इन तीनोंने जोहानिसबर्ग जेलसे ता० २९ जनवरीको एक पत्र[२]लिखा था:

जनरल स्मट्सका उत्तर [३]

[ प्रिटोरिया
जनवरी ३०, १९०८]

[ महोदय ]

आपका २९ तारीखका पत्र मिला। अपने पत्रमें आप लोगोंने उन भारतीयों और चीनियोंके स्वेच्छया पंजीयन करानेकी बात कही है जो ट्रान्सवालमें कानूनके अनुसार रहते हैं और जिन्हें पंजीयनका अधिकार है। उपनिवेश-सचिव आपके इस कदमको समझदारीसे भरा हुआ मानते हैं। वे कहते आये हैं कि ट्रान्सवालके एशियाई सामूहिक रूपसे स्वेच्छया पंजीयन करानेको कहें तो उन्हें अवसर दिया जायेगा। आप लोगोंने अपने पत्रमें कानूनकी जानकारी सही-सही दी है। नोटिसोंके समाप्त हो जानेके बाद कानूनी पंजीयन हो सके, ऐसी बात नहीं है। उपनिवेश-सचिव, कानूनमें बताये गये ढंगका ही पंजीयन मंजूर कर सकते हैं; लेकिन उसके तरीकेमें आप लोग जो छोटे-मोटे परिवर्तन करनेको कहते हैं, उन्हें वे मंजूर कर लेंगे। इस बीच जिनका पंजीयन होगा उनके खिलाफ कानूनकी सजा अमलमें नहीं लाई जायेगी। वे आप लोगोंके इस वचनको स्वीकार करते हैं कि आप इस पंजीयनको अन्तिम और उत्तम बनानेके लिए अपने भाइयों को समझानेका प्रयास करेंगे।

[ आपका आज्ञाकारी सेवक,
ई० एम० जॉर्जेस
कार्यवाहक सहायक उपनिवेश सचिव ]

  1. इस शीर्षकके अन्तर्गत १८ और २५ जनवरी, १९०८ के दो लेख गांधीजीके लिखे नहीं थे, क्योंकि वे उस समय जेल में थे। इसी कारण ये लेख इस खण्डमें उद्धृत नहीं किये जा रहे हैं।
  2. मूल अंग्रेजी पत्रके अनुवादके लिए देखिए "पत्रः उपनिवेश-सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।
  3. यह पत्र ११-७-१९०८ के इंडियन ओपिनियनके अंग्रेजी विभागमें प्रकाशित किया गया था।