पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 8.pdf/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६५
जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

ऊपरके पत्रका अर्थ

ये दोनों पत्र राजनीतिक हैं। इस सम्बन्धमें सच्चा श्रम श्री अल्बर्ट कार्टराइट ('ट्रान्सवाल लीडर' के सम्पादक) ने किया है। स्वयं श्री अल्बर्ट कार्टराइट अपने सत्यके लिए जेल जा चुके हैं। इसीलिए उन्होंने भारतीयोंको सहायता पहुँचानेके अथक प्रयत्न किये हैं। उन्होंने श्री गांधीसे जेलमें मिलनेके लिए सरकारसे खास इजाजत ली। दो बार मिले। पहली भेंट उन्होंने २१ तारीख मंगलवारको की। तब दोनोंके बीच यह बातचीत हुई कि आगामी संसदमें नया कानून रद हो और इस समय भारतीय-समाज स्वेच्छया पंजीयन कराये। दोनोंके बीच इस सम्बन्धमें लिखा-पढ़ी भी हुई। इसके बाद श्री कार्टराइट प्रगतिवादी दल (प्रोग्रेसिव पार्टी) के मुखियोंसे मिले। उन्होंने इसे स्वीकार किया। किन्तु यह सुझाया कि भारतीय लोग जेलसे इस प्रकारका पत्र लिखें और स्वेच्छया पंजीयनकी बात करें। ऐसा पत्र तैयार करके श्री कार्टराइट दुबारा २८ तारीखको जेलमें आये[१] । नया कानून स्वेच्छया पंजीयनवालोंपर लागू न होगा, यह उस पत्रमें स्पष्ट नहीं था; और वह अर्जी अकेले भारतीयोंकी ओरसे थी; तथा उससे फिलहाल जो ट्रान्सवालसे बाहर हैं उनकी रक्षा नहीं होती थी; इसी प्रकार उसमें १६ वर्ष से कम आयुवाले बालकोंका भी समावेश होता था; इसलिए श्री गांधीने उसमें परिवर्तन किये। श्री कार्टराइटने आनाकानी की, तब श्री गांधीने कहा कि यदि इतना स्वीकार न हो तो अभी भारतीय जेलमें ही रहेंगे। श्री कार्टराइट इतना सुनते ही गद्गद् हो गये और बोले: अच्छा, आपको जो परिवर्तन करने हों, सो करें। आप सत्यके लिए लड़ रहे हैं। ये परिवर्तन उचित हैं। और इन्हींसे आपके मानकी रक्षा होगी। यदि श्री स्मट्स इतना स्वीकार नहीं करेंगे तो मैं स्वयं उनका मुकाबला करूँगा और प्रगतिवादी दलसे उनका विरोध कराऊँगा--ऐसी आशा है।" फिर उक्त परिवर्तन करके श्री क्विन और श्री थम्बी नायडूको, जिन्होंने बहुत ही अच्छा काम किया है, बुलाया गया। उन दोनोंने उस पत्रको[२] पसन्द किया, और उसपर हस्ताक्षर कर दिये। उसे लेकर श्री कार्टराइट बिदा हुए। ये हस्ताक्षर दोपहरको १२-३० बजे हुए। श्री कार्टराइट उसी दिन २-३० की गाड़ीसे प्रिटोरिया गय। पाँच बजे उन्होंने टेलिफोन किया कि जनरल स्मट्सने वह पत्र स्वीकार कर लिया है। एक शब्द बदलने की इजाजत माँगी, सो दे दी गई। इससे अन्दाजा हुआ कि अब भारतीयोंकी रिहाई समयपर हो जानी चाहिए।

अन्य शर्तें

कुछ बातें लिखी जाती हैं, और कुछ बातें हमेशा केवल वचनपर छोड़ देनी होती हैं। इस समझौतेमें भी ऐसा ही हुआ है। श्री कार्टराइटकी मारफत यह भी कहलाया गया था कि जो भारतीय सरकारी नौकरियोंसे अलग कर दिये गये हैं उन सबको फिर नौकरीपर बहाल करनेकी व्यवस्था की जानी चाहिए। और जो नया पंजीयन बने, वह किस प्रकारका हो, इसपर भारतीय समाजसे बातचीत होनी चाहिए। इस सम्बन्ध में श्री कार्टराइटने टेलिफोनसे बताया कि नौकरीवालोंके बारेमें जनरल स्मट्स बँधते नहीं हैं लेकिन पूरी कोशिश करेंगे; और

८-५
 
  1. दक्षिण आफ्रिका के सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय ११ में गांधीजी कहते हैं, समझौता पत्रका मसविदा या तो "जनरल स्मट्सने बनाया या मंजूर किया था।"
  2. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", पृष्ठ ३९-४१।