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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भेंटकर्ताने फिर प्रश्न किया : " क्या आपका खयाल है कि यहाँको हलचलका भारतमें भी कोई असर होता है ? " श्री गांधीने उत्तर दिया, बेशक, मेरा खयाल है कि असर होता है | पिछली जनवरी में बम्बई में सर आगाखाँके सभापतित्वमें जो सभा हुई थी, उसमें लोग बहुत बड़ी संख्या में उपस्थित हुए थे । इस प्रश्नपर आंग्ल-भारतीय और भारतीय पूर्णतः एक हैं, और इसी प्रकार मुसलमान, हिन्दू, ईसाई और पारसी भी एक हैं। बम्बईकी इस सभामें जो विरोध-प्रदर्शन किया गया वह जोरदार और सर्वसम्मत था । अभी हालमें जो सूचना मिली है उससे प्रकट होता है कि ट्रान्सवालमें भारतीयोंके प्रति व्यवहार और तज्जनित कष्टसे ब्रिटिश भारतपर गहरा प्रभाव पड़ा है। श्री टी० जे० बेनेटने, जो भारतके एक प्रमुख समाचारपत्रके मालिक हैं, कुछ दिन पहले 'लन्दन टाइम्स' को एक पत्र में लिखा था कि उन्होंने अभी हालकी अपनी भारत यात्राओं में यह देखा है कि अमीर और गरीब, महाराजा और मामूली लोग इस व्यवहारपर घोर रोष प्रकट करते हैं और सब आश्चर्य करते हैं कि साम्राज्य सरकार इसकी छूट देकर आखिर कर क्या रही है। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि इस प्रश्नके सम्बन्धमें लॉर्ड मॉर्लेपर भारत के कई भागोंसे दबाव डाला जा रहा है । भारतके जो लोग साम्राज्यके अत्यन्त गहरे मित्र हैं वे ट्रान्सवालमें और दक्षिण आफ्रिकामें भी भारतीयोंको उचित व्यवहार प्राप्त कराने के उद्देश्यसे आकाश-पाताल एक कर रहे हैं ।

अब भारतीयोंको प्रभावित करनेवाले स्थानीय प्रश्नोंपर आते हुए हमारे प्रतिनिधिने श्री गांधीसे पूछा कि पिछले अधिवेशनमें स्वीकृत भारतीयोंसे सम्बन्धित विधेयकोंके बारेमें आपका खयाल क्या है ।

इस प्रश्नके उत्तरमें उन्होंने कहा कि यदि भारतीयोंसे सम्बन्धित इन विधेयकोंपर सम्राट्की स्वीकृति मिल जाये तो वस्तुतः मुझे बहुत आश्चर्य होगा। उनमें एक सिद्धान्तको स्थापना की गई है, जो मुआवजेका नहीं, बल्कि जब्तीका सिद्धान्त है। ब्रिटेनके शराब परवाना-कानून ( लिकर लाइसेंसिंग लेजिस्लेशन) और व्यापारिक परवाना कानूनको समान बताया गया है। निश्चय ही दोनोंकी कोई तुलना नहीं की जानी चाहिए। शराब के परवानोंको एक बुराई और राष्ट्रीय पतनका कारण माना जाता है । प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि शराब-घर यदि बिलकुल समाप्त न किये जायें तो सीमित कर दिये जायें। इसलिए स्वाभाविक है कि इन परवानोंके सम्बन्धमें कानून बनाया जायेगा, या बनाया ही जाना चाहिए। बहुत-से शराब- घरोंको बन्द कर दिया जाये, इस सम्बन्ध में सभी दल एकमत हैं; किन्तु व्यापारिक- परवानों (ट्रेड लाइसेंस ) के सम्बन्ध में, स्थानीय पूर्वग्रह जो भी हों, कोई भी गम्भीरतापूर्वक यह नहीं कह सकता कि इनको शराब परवानोंके समान मानना चाहिए। मेरे विचार में, जबतक भारतसे गिरमिटिया मजदूरोंको प्रलोभन देकर बुलानेकी प्रणाली जारी है, तबतक, जहाँतक भारतीयोंका सम्बन्ध है, निश्चय ही नेटालमें कोई शान्ति न होगी । परवाना कानून केवल एक बेकार ऊपरी उपचार है। यदि गिरमिटियों का प्रवास रोक दिया जाये तो हम देखेंगे कि भारतीयोंकी समस्या स्वतः हल हो जायेगी । नेटालमें वर्तमान आबादीके लिए काफी गुंजाइश है, और यूरोपीयोंकी आबादी स्वतन्त्र भारतीय आबादीके मुँहकी रोटी छीने बिना निश्चित रूपसे बढ़ेगी। किन्तु यदि गिरमिटकी प्रथा जारी रखी गई तो अवश्य ही भारतीय