पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१०९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७९
भेंट : 'नेटाल मक्युर्री' को

इसके बाद जिस दूसरी बातकी चर्चा हुई वह इस प्रश्नके अन्तर्गत आ जाती है : "ट्रान्सवालमें स्थानीय नेता जेल भेजे गये हैं, इस सम्बन्धमें ब्रिटिश भारतीयोंकी भावना कैसी है ?"

श्री गांधीने उत्तर दिया कि जो-कुछ में देख सकता हूँ उससे तो भावना बहुत कटु प्रतीत होती है । मेरे देशवासी यह समझने में असमर्थ हैं कि एक ब्रिटिश उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंको ट्रान्सवालमें प्रवेश करने का साहस करनेके कारण कारावासके कष्ट क्यों भोगने पड़ते हैं । तीनों नेता ट्रान्सवालकी लड़ाईसे पूर्वके अधिवासी हैं । इससे स्थिति और अधिक दुखदायी लगती है । उनके साथ तीन शिक्षित भारतीय भी कारावास भोग रहे हैं । ये जूलू विद्रोह' समय डोलीवाहक थे और सार्जेन्टके पदपर नियुक्त थे । यह स्मरणीय है कि इनकी सेवाएं इतनी मूल्यवान मानी गई थीं कि सर हेनरी मैककॉलमने उनकी विशेष रूपसे सराहना की थी । और ये भूतपूर्व सार्जेन्ट अपने पदकोंके अधिकारी तो हैं ही, जिन्हें वे रिहा होने पर प्राप्त करेंगे । यह हर किसीको अजीब लगेगा कि ऐसे लोगोंको केवल ट्रान्सवालमें प्रवेशका साहस करने पर कड़ी कैद की सजा दी जाये । जेलमें भेजे गये नेताओं में से एक-- श्री दाउद मुहम्मद -- को प्रत्येक प्रमुख डर्बन-निवासी जानता है और वे नेटाल भारतीय कांग्रेसके अध्यक्ष हैं । दूसरे श्री पारसी रुस्तमजी भी उतने ही प्रसिद्ध हैं । और, तीसरे श्री एम० सी० आंगलिया एक प्रमुख व्यापारी और कांग्रेसके मन्त्री हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी और फ्रेंचमें बहुत अच्छी शिक्षा प्राप्त की है । इसलिए डर्बनके भारतीय यह अनुभव करते हैं कि उन्हें इसलिए कष्ट सहन करने हैं, कि ये नेता अपनी अवधिको समाप्तिसे पूर्व मुक्त कराये जा सकें । इसलिए वे ट्रान्सवाल में प्रवेश करनेके लिए ऐसे और अधिक भारतीय भेजने की उपयुक्ततापर विचार कर रहे हैं जिन्हें वहाँ जानेका अधिकार है, ताकि वे उन कष्टोंमें हिस्सा बॅटा सकें, जो उनके नेताओंको सहन करने पड़ रहे हैं। यह बिल्कुल स्पष्ट है कि जनरल स्मट्सने दक्षिण आफ्रिका-भरमें ब्रिटिश भारतीयोंकी एक अप्रत्यक्ष सेवाकी है । वे एक-दूसरेके इतने करीब कर दिये गये हैं जितने करीब वे पहले कभी नहीं थे; और वे अपनी स्थितिको समझने एवं यह अनुभव करने लगे हैं कि यदि उन्हें अपने-आपको दक्षिण आफ्रिकामें आत्म-सम्मानी लोगोंके रूपमें मान्य कराना हैं तो उन्हें कन्धे से कन्धा भिड़ाकर काम करना और बहुत कष्ट सहन करना होगा ।

श्री गांधीने कहा कि जो बन्दी मुक्त हुए हैं; उनकी मार्फत इन नेताओंसे इस आशयकी खबरें मिली हैं कि वे बिलकुल खुश हैं, यद्यपि सरकार उन्हें ऐसा भोजन देकर, जो भारतीयोंकी आदतोंके अनुकूल नहीं है, बिलकुल भूखों मार रही है। नेता कहते हैं कि वे तबतक जेलमें रहेंगे जबतक आन्दोलन समाप्त नहीं हो जाता और ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके उचित अधिकारोंको मान्यता नहीं दी जाती । उनमें से अधिकतर सार्वजनिक सड़कोंपर पत्थर तोड़ने के लिए भेज दिये गये हैं। श्री गांधीने आगे कहा कि ज्यादातर नेता बहुत कमजोर हैं और श्री दाउद मुहम्मद बूढ़े हैं एवं मुश्किलसे कोई बोझ उठा सकते हैं; किन्तु उन्हें अपने देशसे इतना प्रेम है कि, ज्ञात हुआ है, उन्हें जो भी काम दिया जाता है, उसे वे अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक करते हैं ।

१. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ३७-८७९ ।