पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/११५

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४३. पादरियोंके लिए मसविदा

[ अक्तूबर २, १९०८]

[१]

डेलागोआ बेसे कोमाटीपूर्टके रास्ते ट्रान्सवालमें अपने घरोंके लिए जाते हुए बहुत-से भारतीय यात्रियोंके साथ किये गये कथित दुर्व्यवहारसे क्षुब्ध होकर हम जोहानिसबर्गवासी पादरी, धर्म और मानवताके नामपर ट्रान्सवाल सरकारसे अनुरोध करते हैं कि वह इन आरोपोंकी तत्काल सावधानीपूर्वक जांच कराये और प्राप्त प्रमाणोंके आधारपर ऐसी कार्रवाई करे जिससे न्यायकी रक्षा हो ।

हम यह प्रार्थना भी करते हैं कि जेलके भोजनकी कुछ चीजोंके सम्बन्ध में एशियाइयोंकी धार्मिक आपत्तियों का खयाल रखा जाये तथा वर्तमान कठिनाइयोंके सन्तोषजनक समाधानके लिए एक बार फिर सच्चा प्रयास किया जाये ।

डोक
फिलिप्स
हॉवर्ड
टिटकम्ब
कैनन बेरो
डॉ० हंटर बेरो
लेंडर ब्लॉप

[२]

पेंसिलसे लिखे मूल अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० ४८८५) से ।

४४. नेटालके गिरमिटिया

डर्बनका 'नेटाल ऐडवर्टाइजर' नामक समाचारपत्र निश्चित रूपसे भारतीय समाजका शत्रु है, किन्तु उसके सम्पादकसे भी भारतीय गिरमिटियों का दुःख सहन करते नहीं बनता । उसने एक बड़ी टिप्पणी में यह सिद्ध किया है कि गिरमिट प्रथाके कारण भारतीय जिस स्थितिमें रहते हैं, उसमें और दासतामें बहुत अन्तर नहीं है । इन गिरमिटियोंका कारोबार प्रवासी-न्यास ( इमिग्रेशन ट्रस्ट) नामका मण्डल चलाता है। इस मण्डलके सदस्योंका चुनाव गिरमिटियोंको नौकर रखनेवाले गोरे करते हैं । उनके हाथमें गिरमिटियोंके लिए आवश्यक चिकित्सकोंका भी चुनाव है। डॉक्टरोंपर गिरमिटियोंका सुख बहुत हद तक निर्भर रहा करता है । अब यदि डॉक्टरोंको रोजी गिरमिटियोंके मालिकोंपर आधारित हो, तो साधारण तौरपर वे डॉक्टर

  1. यह मसविदा अनुमानत: लगभग उसी समय लिखा गया था जब गांधीजीने उपनिवेश सचिवको तार भेजा था । देखिए पृष्ठ ८१ और पिछला शीक ।
  2. हस्ताक्षरकर्ताओंके नाम गांधीजीकी लिखावटमें हैं ।