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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

स्वतन्त्र विचार प्रकट नहीं कर सकते । उदाहरणके लिए, यदि कोई डॉक्टर ऐसा कहे कि अमुक भारतीय काम करनेके योग्य नहीं है, तो उस गिरमिटियाके मालिकको न केवल बीमारीकी उस अवधि में उसके श्रमके लाभ से वंचित रहना पड़ेगा, बल्कि उसकी दवा-दारूका खर्च भी उठाना पड़ेगा। इस तरह यदि कोई डॉक्टर अपने कर्तव्यका पालन करता है, तो उसपर मालिकके नाखुश हो जानेकी सम्भावना है; और जब अपने कर्तव्यके साथ अपने स्वार्थका सवाल खड़ा हो जाता है, तब बहुत-से आदमी कर्तव्यको तिलांजलि देकर स्वार्थ साधने लगते हैं । इसलिए 'ऐडवर्टाइजर' का कहना है कि डॉक्टरोंको गिरमिटियोंके मालिकोंके अंकुशसे बाहर रखना चाहिए। जो भारतीयोंका संरक्षक (प्रोटेक्टर) कहलाता है, उसकी स्थिति भी लगभग वैसी ही विषम है जैसी कि डॉक्टरोंकी । यह संरक्षक न्यासी- मण्डल (ट्रस्ट बोर्ड) का सदस्य होता है और चूँकि उसके अधिकतर सदस्य गिरमिटियोंके मालिक हैं इसलिए संरक्षककी आवाज नक्कारखाने में तूतीकी आवाज-जैसी हो जाती है। इसके अतिरिक्त 'ऐडवर्टाइज़र' कहता है कि यदि गिरमिटिये काम छोड़ बैठें, तो उन्हें जेल भोगनी पड़ती है। साधारण नौकर नौकरी छोड़ता है, तो उसका मालिक उसपर फकत दीवानी दावा दायर कर सकता है, किन्तु गिर- मिटियेके भाग्य में तो कैदखाना ही है । 'ऐडवर्टाइजर' कहता है कि इस स्थितिका नाम दासता है । और फिर उसके सम्पादक उपनिवेशके गोरोंको सलाह देते हुए कहते हैं कि भारतीयोंको गिरमिटके अधीन लाना बन्द किया जाये और गिरमिटके कानून में फेरफार किया जाये । गिरमिटियोंको स्थितिको सुधारनेका यह बहुत उपयुक्त अवसर है। लेकिन हम मानते हैं कि गिरमिटियोंको स्थिति में वास्तविक सुधार असम्भव-सी बात है। गिरमिट [ की प्रथा ] बन्द करना ही उसका वास्तविक उपाय है। मॉरिशसके एक भारतीय की गिरमिटगिरीका अनुभव हिन्दुस्तानके किसी समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ है । हम उसे संक्षेपमें दूसरी जगह दे रहे हैं।[१] सम्भव है कि उस लेख में कुछ अतिशयोक्ति हो, फिर भी इतना तो निश्चित है कि गिरमिट बहुत भयानक वस्तु है और संसारके किसी भी भाग में गिरमिटिया भारतीयोंकी हालत अच्छी नहीं पाई जाती । संसारका इतिहास देखनेसे मालूम होता है कि पहले गुलामोंको सामान्यतः पशुओंकी जगह और पशुओंकी तरह रखा जाता था और ज्यों ही अंग्रेजी जनताके प्रयत्नसे कानूनसम्मत गुलामी बन्द हुई, त्यों ही वह दूसरे रूपमें दाखिल हो गई। फिलहाल जहाँ-जहाँ भारतीय अथवा दूसरी कोमके गिरमिटिये देखे जाते हैं, वहाँ-वहाँ अथवा उसके आसपास पहले गुलाम रखे जाते थे । सम्पत्तिशाली व्यक्तिकी प्रवृति दूसरे व्यक्तियोंको जबरदस्ती दबाकर रखनेकी होती है। इसलिए इस प्रवृतिसे उत्पन्न दुःखोंको दूर करनेका एक ही इलाज है कि कानून उनके अधिकारोंकी हद बांध दे, यानी गिरमिटके द्वारा लोगोंकी मजदूरीसे लाभ उठानेका रास्ता कानूनसे बन्द कर दिया जाये। इसलिए नेटालके भारतीयोंका इस विषय में मुख्य कर्तव्य तो यह है कि बड़े आन्दोलन द्वारा -- • सत्याग्रहका भी प्रयोग करके रिवाज खत्म करें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-१०-१९०८
  1. यहाँ नहीं दिया जा रहा है