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६६. पत्र : श्रीमती कस्तूरबा गांधीको

[ फोक्स रस्ट जेल ]
नवम्बर ९, १९०८

प्यारी कस्तूर,

तुम्हारी तबीयत के बारेमें आज श्री वेस्टका तार मिला । मेरा हृदय फटा जा रहा है, मैं रो रहा हूँ । लेकिन तुम्हारी शुश्रूषा करने आऊँ, ऐसी स्थिति नहीं है । सत्याग्रह संघर्षको मैंने अपना सब कुछ अर्पित कर दिया है। इसलिए मुझसे आना हो ही नहीं सकता। जुर्माना दूं तभी आ सकता हूँ, और जुर्माना मुझसे दिया नहीं जायेगा। तुम जरा हिम्मत रखो और नियमपूर्वक खाओ-पिओ तो अच्छी हो जाओगी। फिर भी मेरी बदनसीबी से कहीं ऐसा हो कि तुम चल बसो, तो मैं इतना ही कहूँगा कि मेरे जीते-जी तुम वियोग में भी मर जाओ तो इसमें कुछ बुरा नहीं है । तुमपर मेरा इतना स्नेह है कि तुम मरकर भी मेरे मनमें जीवित रहोगी । तुम्हारी आत्मा तो अमर है । मैं तुमसे विश्वासपूर्वक कहता हूं कि यदि तुम चली ही जाओगी तो मैं तुम्हारे पीछे दूसरी शादी नहीं करूँगा । ऐसा मैं कई बार कह भी चुका हूँ । तुम ईश्वर में आस्था रखकर प्राण त्यागना । तुम मर जाती हो तो वह भी सत्याग्रहके लिए ही होगा । हमारा संघर्ष मात्र राजनीतिक नहीं है। यह संघर्ष धार्मिक है, इसलिए अत्यन्त शुद्ध है । उसमें मर जायें तो क्या और जीवित रहें तो क्या ? आशा है, तुम भी ऐसा ही सोचकर तनिक भी खिन्न नहीं होगो । इतना में तुमसे मांगे लेता हूँ ।

मोहनदास

[ गुजराती से ]
'बापूना बाने पत्रो', इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस, फोनिक्स, १९४८

६७. जेलसे सन्देश

[१]

हम तो एक ही उम्मीद करते हैं कि हरएक आदमी इस लड़ाईमें पूरी तरह मुस्तैद रहेगा और जो प्रण लिया है उसे कभी नहीं छोड़ेगा -- फिर चाहे लड़ाई आठ दिन चले, चाहे आठ महीना, चाहे आठ वर्ष और चाहे उससे भी ज्यादा । जो लोग हारकर लड़ाईको छोड़ दें, उनपर किसी तरहका जुल्म करना हमारा काम नहीं है । जो जुल्म करेगा, वह इस लड़ाईको समझता नहीं, ऐसा मैं मानता हूँ । लड़ाई इतनी लम्बी हो गई है, इसके कारण भी हम ही हैं । हम विचार करके इन कारणोंको दूर कर दें तो वह आज ही खत्म हो जाये ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-१२-१९०८
  1. यह जोहानिसबर्गमें १९०८ के एशियाई पंजीयन संशोधन कानून (एशियाटिक रजिस्ट्रेशन अमेंडमेंट ऐक्ट) के मुताबिक पंजीयनकी मीयाद खत्म होनेसे पहले बुलाई गई भारतीयोंकी सार्वजनिक सभामें पढ़ा गया था।