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६८. भेंट : जस्टिन स्टेशनपर

[१]

[ जर्मिस्टन
दिसम्बर १२, १९०८]

[ श्री गांधीने कहा : ] मैंने सब आरोपोंके सम्बन्ध में सुना है; किन्तु मुझे जो थोड़ी-सी बात कहनी है, वह बाद में कहूँगा । जेलमें एक-एक मिनट मैंने सुखसे बिताया है । [ दूसरे सवाल के जवाब में उन्होंने कहा : ] जेल में मेरे साथ अच्छा बरताव किया गया। मेरी शिकायत जेलके नियमोंके विरुद्ध है । अधिकारियोंका तो नियमोंके अनुसार चलना कर्तव्य है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, १९-१२-१९०८

६९. भाषण : जोहानिसबर्गके स्वागत-समारोहमें

[ जोहानिसबर्ग
दिसम्बर १२, १९०८]

अध्यक्ष महोदय, नेटालके प्रतिनिधियो, तमिल तथा अन्य भाइयो,

आज मैं आपसे दो महीने दस दिन बाद मिल रहा हूँ। मैं तो समझता हूँ, में जेलमें नहीं, बाहर ही था; और आज अपनेको जेलमें आया मानता हूँ । बाहरवाले लोगोंको जेल- वालोंसे ज्यादा जिम्मेदारियाँ निभानी हैं। जबतक बाहरवाले पूरा जोर नहीं लगाते, तबतक बेड़ियाँ टूटने की नहीं । फोक्स रस्टके स्टेशन मास्टरने जब मुझे जेलसे छूटने के लिए मुबारकबादी दी, तो उसे भी मैंने यही बताया कि जेलमें तो मैं आज ही प्रवेश कर रहा हूँ; अब मेरे मत्थे जेलकी बनिस्बत बहुत ज्यादा सख्त काम आ पड़े हैं ।

जिस देशमें लोगोंपर अन्याय और जुल्म बरपा हो, उन्हें अपने वाजिब हक भी न मिलें, [ वहाँ ] लोगोंका सच्चा कर्तव्य जेलमें रहना ही है। और मैं मानता हूँ, जबतक प्रतिबन्ध- रूपी बेड़ी नहीं टूटती तबतक जेलमें ही रहकर दिवस बिताना सच्चे और खुदापर भरोसा करनेवाले लोगोंका असली धर्म है ।

आज स्टेशनपर जो दृश्य देखा, उसके बारेमें दो शब्द कहना चाहता हूँ। मैंने भारतीयोंकी जो सेवा की, वह कौमको पसन्द आई। मैंने एक दिन पत्थर तोड़नेका काम किया, जेलमें रहा, तथा और भी जो कुछ किया, उसकी आप कद्र करते हैं और इसीलिए यहाँ इतनी बड़ी तादाद में इकट्ठे हुए हैं । जहाँ खुदा है, वहाँ सत्य है; और जहाँ सत्य है, वहाँ खुदा । मैं खुदासे डरकर ही चलनेवाला आदमी हूँ। मैं सत्यको ही चाहता हूँ, इसीलिए खुदा मेरे पास है ।

  1. गांधीजी अपनी रिहाईके बाद जब १२ दिसम्बरको फोक्सरस्टसे जोहानिसबर्ग जा रहे थे, तब उनसे जेलमें किये गये दुर्व्यवहारके सम्बन्ध में यह भेंट की गई थी ।