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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

श्री गांधी : हम तो उन लोगोंको, जो अपनी मनुष्यताको भूल जाते हैं, केवल यह याद दिलाना चाहते हैं कि संसारमें सामाजिक बहिष्कार नामकी भी कोई चीज है ।

श्री जॉर्डन : में नहीं मानता कि यह सामाजिक बहिष्कार है । मेरा तो खयाल है कि लोगोंको इस बातका वाजिब डर है कि कहीं उनके हाथ-पाँव न तोड़ दिये जायें।

श्री गांधी : अगर ऐसा होता तो पाँच सौ आदमी अपना पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) नहीं करवा सकते थे और शेष समाजके साथ वे इतनी अच्छी तरह हिल-मिलकर नहीं रह सकते थे और न लड़ाईके लिए चन्दा ही देते रह सकते थे ।

श्री जॉर्डन : ठीक है; तो अभियुक्तोंको अनिश्चित कालके लिए हवालात में वापस भेजा जाता है ।

श्री गांधी : अगर कहीं भी आतंकसे काम लिया जा रहा हो और संघ के अधिकारियोंका ध्यान उधर दिला दिया जाये तो वे अपनी शक्ति-भर सरकारको मदद करेंगे ।

इसी प्रकार दूसरे गिरफ्तार भारतीयोंको भी वापस हवालात भेज दिया गया ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-१२-१९०८

७३. भारी संघर्ष

ट्रान्सवालमें जो संघर्ष चालू है, वह कैसा भारी है, यह बात दिन-प्रति-दिन प्रकट होती जाती है। कानूनको रद होना ही है; यह माँग महत्त्वपूर्ण है, इसमें सन्देह नहीं । फिर भी ज्यों- ज्यों वक्त गुजरता है त्यों-त्यों संघर्षका सच्चा स्वरूप देखनेका लाभ मिलता जाता है। हम पहले बता चुके हैं कि ट्रान्सवालके भारतीय केवल ट्रान्सवाल- सरकारके विरुद्ध ही नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि वे साम्राज्य सरकारके विरुद्ध भी लड़ रहे हैं। इसके अलावा हम कह चुके हैं कि ट्रान्सवालके भारतीय सिर्फ अपने ही लिए नहीं लड़ रहे हैं, बल्कि दक्षिण आफ्रिका के सारे भारतीयोंके लिए, विशेषतः बाहर रहनेवाले सभी भारतीयोंके लिए और ठीक सोचें तो समस्त भारतके लिए लड़ रहे हैं। हाल में ही इस विचारको इंग्लैंडसे समर्थन मिला है। कर्नल सीलीने जो भाषण दिया उसका सार और श्री रिच द्वारा दिया गया उसका उत्तर हम दूसरी जगह दे रहे हैं । उस भाषण में कर्नल सोलीने जो कुछ कहा है वह विचारणीय है । भारतीयोंको अच्छी जलवायुके देश में बसने के लिए न जाना चाहिए। गोरे और काले नहीं मिल सकते। उनके मिलापसे दोनोंका नुकसान है। भारतीय भात खानेवाले हैं और उनसे स्पर्धा कर गोरोंका निर्वाह नहीं हो सकता। इन वाक्योंसे साम्राज्य सरकारका विचार प्रकट होता है । इनका अर्थ यह हुआ कि वे भारतीयोंको इतना होन मानते हैं मानो वे गोरोंकी गुलामी करनेके ही योग्य हों। कर्नल सीली इस भाषण में कहते हैं कि जो भारतीय इस समय ट्रान्सवाल और अन्य उपनिवेशोंमें रहते हैं। उनको तो इज्जतके साथ रहने देना चाहिए । साथ वे यह भी कहते हैं कि जनरल बोथा जो कुछ कर रहे हैं, वह ठीक है । अर्थात् कर्नल सीलीका हमें इज्जतके साथ रखनेका विचार केवल ढोंग है। कर्नल सीलीके भाषणका यह अर्थ भी हुआ कि जहाँ गोरे अपना घर बना