संघर्ष यशको मृत्यु पर्यन्त हाथसे न जाने दें और अपना नाम और भारतका नाम सारी दुनिया में अमर कर दें।
इंडियन ओपिनियन, १९-१२-१९०८
७४. नेलसनको पुस्तक भेंट : दो शब्द
[ जोहानिसबर्ग ]
दिसम्बर २३, १९०८
श्री जी० नेलसनको
[ जोहानिसबर्ग ] दिसम्बर २३, १९०८ फोक्सरस्टमें मेरी कैदके दौरान कानूनकी सीमाओंमें रहते हुए की गई उनकी अनेक कृपाओंके लिए ।
मो० क० गांधी
- गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजीसे ।
- सौजन्य : गांधी स्मारक संग्रहालय, नई दिल्ली
७५. वर्षका लेखा-जोखा
अंग्रेजी वर्ष अब समाप्त हो रहा है । हमारी स्थिति ऐसी है कि हम अपना संवत् अंग्रेजी संवत्के बराबर महत्त्वपूर्ण नहीं मानते । हमारे काम-काज अंग्रेजी अथवा यूरोपीय वर्षपर आधा- रित होते हैं। हम यह आभास देना नहीं चाहते कि यह स्थिति खेदजनक है । किन्तु अभी तो इससे हमारी पतितावस्था ही प्रकट होती है । यदि हम सच्चे अर्थोंमें स्वतन्त्र होते तो यह बात असाधारण न मानी जाती। हम संसारके सब भागोंसे भली-भाँति मिलजुल कर रहना चाहते हैं, इसलिए पारस्परिक सुविधाकी दृष्टिसे यूरोपीय वर्षका उपयोग करें तो यह बुरा न माना जायेगा । किन्तु यह सब एक अलग विषय है। इस लेखका उद्देश्य वर्षका लेखा-जोखा पेश करना है ।
नेटालकी स्थितिको जांचें तो हम देखते हैं कि नेटाल-सरकार हमारे विरुद्ध बहुत-से कानून बनाना चाहती थी; किन्तु साम्राज्य सरकारने उनकी मंजूरी नहीं दी । गिरमिटिया मजदूर अब आगे लाये जायें या नहीं, इसपर विचार करनेके लिए एक कमीशन मुकर्रर किया गया है। सम्भव है, इसका परिणाम कुछ ठीक निकले; किन्तु विधेयक नामंजूर कर दिये गये हैं, यह कोई विशेष प्रसन्नताकी बात नहीं है । अपनी आन्तरिक स्थितिकी दृष्टिसे [ नेटाल भारतीय ] कांग्रेसने अच्छा काम किया है । किन्तु कांग्रेसका आर्थिक संकट बना ही रहता है, यह स्थिति उसके कर्णधारोंके लिए विचारणीय है । लोगों में काफी जोश नहीं है। व्यापार नष्ट हो गया है। जमीनका दाम घट जाने से बहुत-से भारतीय गरीब हो गये हैं। नौकरोंको भी कष्ट सहने पड़ते हैं । भारतीयों में
- ↑ गांधीजीने फोक्सरस्ट जेलके (जहाँ उन्होंने अपनी कैद की सजा काटी थी) वार्डरको टॉल्स्टॉयकी कृति - किंगडम ऑफ गाड इज विदिन यू की एक प्रति भेंटमें दी थी । उसपर उन्होंने उपर्युक्त शब्द लिख दिये थे ।